जब पीएम बनकर पहुंचे थाने, और पूरा थाना सस्पेंड कर दिया!

चौधरी चरण सिंह एक थे, पर उनके रूप अनेक थे। उनके व्यक्तित्व की कई परतें थीं — हर परत में एक नया चरण सिंह, अपनी पहचान और अपने सिद्धांतों के साथ। वो केवल नेता नहीं थे, एक सोच थे। किसान उनका विषय नहीं, आत्मा थे। ऐसा व्यक्तित्व बहुत कम देखने को मिलता है, और शायद यही वजह थी कि उत्तर प्रदेश के पाँचवे मुख्यमंत्री और देश के पाँचवे प्रधानमंत्री के रूप में उनका नाम आज भी इतिहास में गूंजता है।

गांव से संसद तक का सफर

23 दिसंबर 1902 को ग़ाज़ियाबाद के हापुड़ तहसील में जन्मे चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की। वकालत के साथ-साथ समाज की समस्याओं से भी रूबरू होते रहे। 1929 में लाहौर में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया और चरण सिंह ने इससे प्रेरित होकर ग़ाज़ियाबाद में कांग्रेस कमेटी बनाई।

1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। समंदर न सही, चरण सिंह हिंडन नदी ही पहुँच गए नमक बनाने — और जेल चले गए। इसके बाद उनका पूरा जीवन स्वतंत्रता संग्राम और किसानों के अधिकारों को समर्पित हो गया।

विधानसभा से मुख्यमंत्री तक

1937 में बागपत से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने किसानों के हक में एक क्रांतिकारी बिल पेश किया — एक ऐसा बिल जो ब्रिटिश शासन के ज़मींदारी कानूनों को चुनौती देता था।

3 अप्रैल 1967 को वो पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 17 अप्रैल 1968 को इस्तीफा दे दिया। फिर 17 फरवरी 1970 को दोबारा मुख्यमंत्री बने। अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रशासनिक सुधारों से लेकर किसान नीतियों तक कई बड़े फैसले लिए।

दिल्ली की सत्ता तक पहुंचा किसान का बेटा

केंद्र में मोरारजी देसाई की सरकार में गृह मंत्री बने और मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की नींव रखी। लेकिन मतभेदों के चलते उन्होंने जनता दल छोड़ दिया। इसके बाद 28 जुलाई 1979 को वे देश के प्रधानमंत्री बने।

इंदिरा गांधी ने समर्थन की शर्त रखी — अपने खिलाफ केस हटवाने की — लेकिन चरण सिंह ने सत्ता छोड़ दी पर सिद्धांत नहीं। 14 जनवरी 1980 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

वो किस्सा जो हमेशा याद रहेगा

प्रधानमंत्री रहते हुए एक बार वो इटावा जिले के ऊसराहार थाने में बिना बताए, साधारण कपड़ों में पहुंचे। रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की, लेकिन रिश्वत मांगी गई। अंत में उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री बताते हुए मुहर लगाई और पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया।

इस घटना ने उनके व्यक्तित्व की दो सबसे बड़ी बातें उजागर की — सादगी और ईमानदारी।

एक नेता, जो सपनों में आता था

चौधरी चरण सिंह के देहांत के बाद भी जाट समुदाय में उनके प्रति श्रद्धा का आलम ऐसा रहा कि कहा जाता है — हर चुनाव में वे बुज़ुर्गों के सपने में आकर कहते थे, “मुझे भूल गए? मेरे नाम पर वोट दे दो…” और लोग भावनाओं में बहकर उनके बेटे अजीत सिंह को वोट दे देते थे।

एक प्रेरणा, जो अमर है

29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनके विचार, उनके संघर्ष और किसानों के लिए उनकी लड़ाई आज भी ज़िंदा है। वो सिर्फ एक राजनेता नहीं थे — वो किसानों की आवाज़ थे, भारत की मिट्टी से उठी वो लहर थे, जिसने सत्ता के सिंहासन तक किसान को पहुंचाया।

एक पंक्ति में उन्हें याद करें:

"जो खेत से संसद तक चला, और किसान को उसका हक दिलाकर गया – वो था चौधरी चरण सिंह।"

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