फिंगेश्वर नहर मरम्मत मामला: विभागीय पारदर्शिता से खुल रही परतें, 'कमज़ोर कड़ी' से हुई छवि धूमिल

गरियाबंद : फिंगेश्वर सिंचाई अनुविभाग में नहर मरम्मत कार्यों को लेकर सामने आई वित्तीय अनियमितताओं की जांच अब जिला प्रशासन के संज्ञान में है। हालांकि इस मामले में कुछ तथाकथित दस्तावेज़ों और भ्रम फैलाने वाली गतिविधियों ने विभाग की छवि को प्रभावित करने का प्रयास जरूर किया है, लेकिन जल संसाधन विभाग ने समय रहते पारदर्शिता और जिम्मेदारी का परिचय देते हुए उचित कदम उठाया है।
मरम्मत कार्यों की प्रक्रिया रही नियमानुसार
बताया जाता है कि जनवरी-फरवरी 2025 में टेल एरिया के किसानों को समय पर सिंचाई सुविधा पहुंचाने के उद्देश्य से फीस वर्क ठेकेदारों के माध्यम से नहरों की मरम्मत का कार्य कराया गया। यह कार्य तत्कालीन सब इंजीनियर की निगरानी में नियमानुसार संपन्न हुआ।
ठेकेदारों द्वारा मजदूरों को भुगतान किया गया, जो विभागीय प्रक्रिया के तहत ठेकेदार की जिम्मेदारी होती है। फिंगेश्वर अनुभाग उस समय राजिम SDO के प्रभार में था, और विभाग ने पूरी प्रक्रिया की तकनीकी स्वीकृति एवं प्रशासनिक अनुमति के बाद ही भुगतान किया।
दस्तावेज़ लीक कर रहा अधिकारी बना संदेह का केंद्र
मामले में जहां विभागीय वरिष्ठ अधिकारी तथ्यों के आधार पर जांच में सहयोग कर रहे हैं, वहीं विभाग के ही एक 'कमज़ोर कड़ी' अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत टीस निकालने और राजनीतिक संपर्कों के जरिए विभाग को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो उक्त अधिकारी की विभाग में तकनीकी योग्यता नगण्य रही है और वह विवादों से भी पूर्व में जुड़ा रहा है। कार्य में निष्क्रियता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के बावजूद अब वह गुप्त रूप से दस्तावेज़ लीक कर विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।
विभागीय पारदर्शिता बनी जांच का आधार
हालांकि प्रारंभिक स्तर पर जो आरोप सामने आए, वे RTI के माध्यम से प्राप्त दस्तावेज़ों और स्थल निरीक्षण के आधार पर थे, लेकिन विभाग ने कभी भी जांच से बचने की कोशिश नहीं की। जिला कलेक्टर द्वारा गठित जांच समिति में विभागीय अधिकारी पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। जांच समिति का गठन यह दर्शाता है कि विभाग पारदर्शिता और जवाबदेही में विश्वास रखता है, न कि आरोपों से डरता है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, जिस तरह से एक निष्क्रिय अधिकारी और एक स्थानीय नेता मिलकर विभागीय छवि को धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि छवि ध्वस्त करने का सुनियोजित प्रयास भी है।
क्या कहती है सच्चाई?
जब तक जांच पूरी नहीं होती, किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगा। लेकिन एक बात साफ़ है — विभाग की नीयत स्पष्ट है, और वह हर संभव तरीके से सहयोग करने को तैयार है। सच्चाई की तलाश में विभाग स्वयं को कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं हट रहा, जो आज के दौर में एक साहसी और ईमानदार कदम माना जाएगा।
रिपोर्टर : मनोज
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