आज खरना का निर्जला व्रत, जानें प्रसाद ग्रहण करने का शुभ समय

BY CHANCHAL RASTOGI 

 

हर वर्ष छठ महापर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं. जहाँ इस वर्ष 5 नवंबर 2024 को नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हुई, जो चार दिनों तक चलता है. इस दौरान छठी मईया और सूर्य देव की पूजा की जाती है. घर से घाट तक छठ गीतों की धुन सुनाई देती है. यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से अष्टमी तक मनाया जाता है. दूसरे दिन, जिसे खरना कहते हैं, व्रती निर्जला व्रत रखते हैं. इस साल खरना 6 नवंबर 2024 को यानी आज मनाया जा रहा है. बता दे की छठ महापर्व हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जिसमें भक्तगण सूर्य देवता की आराधना करते हैं. इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और छठी मैय्या का प्रसाद तैयार करती हैं. खरना में गुड़ की खीर बनाने का रिवाज है. यह खीर मिट्टी के चूल्हे पर तैयार की जाती हैं. व्रती महिलाएं प्रसाद के रूप में सबसे पहले इस खीर को ही ग्रहण करती हैं. उसके बाद इसे लोगों में बांटा जाता है. इस दिन सूर्य देव की विधिवत पूजा का भी विधिवत पूजा का भी विधान है. 

खरना शुभ मुहूर्त:

खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रहती है. शाम में शुभ मुहूर्त पर में खीर और मीठी रोटी का प्रसाद ग्रहण कर निर्जला व्रत की शुरुआत करती है. आज 6 नवंबर को खरना के दिन कई शुभ योग का संयोग बना है. वहीं खरना पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. इस समय के दौरान ही व्रती को खरना का प्रसाद (खीर-रोटी) ग्रहण करना चाहिए. 

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खरना पूजा विधि :

छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन घर को अच्छी तरह से साफ-सफाई कर शुद्ध किया जाता है. व्रती स्नान करने के बाद नए कपड़े पहनती है और सूर्य देव को अर्घ्य देती है. इसके बाद पूजा की तैयारी में जुट जाती है.
मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर खरना का प्रसाद तैयार किया जाता है. प्रसाद के रूप में इस दिन दूध, चावल और गुड़ की खीर बनती है. साथ ही मीठी रोटी भी बनाई जाती है. सबसे पहले इस प्रसाद का भोग छठी मैया को लगाया जाता है और फिर इसी प्रसाद से व्रती खरना करती है. फिर घर के सभी सदस्यों में इसका वितरण किया जाता है.

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सूर्य को अर्घ्य देना:

खरना के दिन सूर्यास्त से ठीक पहले व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं. सबसे पहले छठी मैय्या के पूजन स्थिल पर एक दीपक जलाया जाता है. फिर पानी में गंगाजल और दूध मिलाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है. पूजा के बाद सूर्य देव को प्रसाद का भोग लगाया जाता है और उसे लोगों में वितरित  किया जाता है. फिर व्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसे नैवेद्य भी कहा जाता है. 

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