चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट हुआ , असली भूचाल तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आया ..
चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट हुआ , लेकिन असली भूचाल तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आया ..वो भी तब जब एक ही मंच पर साथ खड़े हुए — भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग — तो तस्वीरें तो साधारण थीं, लेकिन संदेश बेहद असाधारण!तीनों महाशक्तियों के नेताओं की नजदीकी देखकर वॉशिंगटन में खलबली मच गई है। अमेरिका को जैसे झटका लग गया हो — और अब उसने तुरंत ‘भारत से दोस्ती’ की मीठी मीठी बातें शुरू कर दी हैं।नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया पर लंबा-चौड़ा पोस्ट ठोक दिया। एक्स पर लिखा गया-
“भारत-अमेरिका साझेदारी 21वीं सदी की परिभाषित दोस्ती है... यह रिश्ता ऊंचाइयों को छू रहा है... दोनों देशों की जनता के बीच स्थायी मित्रता इसका आधार है।”
लेकिन सोचिए ये वही अमेरिका है, जो कुछ हफ्ते पहले भारत के रूस से तेल खरीदने पर आँखें तरेर रहा था। अब वही अमेरिका, SCO समिट की एक तस्वीर के बाद, भारत को गले लगाने को बेताब दिख रहा है।कहने को ये ‘कूटनीतिक बयान’ हैं, लेकिन इसके पीछे की बेचैनी साफ झलक रही है। अमेरिका को एहसास हो गया है — अगर भारत रूस और चीन के और करीब गया, तो एशिया में अमेरिका की पकड़ ढीली पड़ जाएगी।
विशेषज्ञों की मानें तो मोदी-पुतिन-जिनपिंग की ‘तीर-एक कमान’ वाली तस्वीर ने अमेरिका को कूटनीतिक तौर पर बैकफुट पर ला दिया है।रूस-चीन पहले से ही अमेरिका के मुकाबले वाले खेमे में हैं।और अब अगर भारत भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो जाए — तो वॉशिंगटन के लिए ये भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।अभी तक भारत ने एक बैलेंसिंग एक्ट खेला है — लेकिन SCO समिट से जो संकेत निकले हैं, वो अमेरिका के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं।
कुछ ही समय पहले अमेरिका ने भारत के रूस से डिस्काउंटेड क्रूड ऑयल खरीदने पर खूब भौंहें चढ़ाई थीं।लेकिन अब?अब वही अमेरिका भारत को कह रहा है — “हमारी दोस्ती अमूल्य है।”जाहिर है, जब अमेरिका जैसे देश की भाषा रातों-रात बदलती है, तो समझना चाहिए कि मामला सिर्फ दोस्ती का नहीं... बल्कि भू-राजनीतिक समीकरणों का है।
देखा जाए तो SCO समिट में एक तस्वीर से पूरी वॉशिंगटन डिफेंस मोड में आ गई है।अब अमेरिका भारत को “21वीं सदी का सबसे अहम साझेदार” बता रहा है। लेकिन सच्चाई ये है — दुनिया अब multi-polar होती जा रही है, और भारत उस खेल का सबसे चतुर खिलाड़ी बन चुका है।अब देखना ये है कि क्या अमेरिका की यह ‘दोस्ती की दुहाई’ लंबे समय तक चलेगी या ये सिर्फ SCO के असर में आई डिप्लोमैटिक घबराहट है

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