कांग्रेस की ‘धन्यवाद रैली’रैली से क्या बदलेंगे यूपी का समीकरण
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 नजदीक आते ही राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। बीजेपी, सपा, कांग्रेस और बसपा चुनावी समर में पूरी ताकत के साथ उतरने की तैयारी कर रहे हैं। खासकर कांग्रेस, जो लंबे समय से यूपी की सत्ता से बाहर है, अब अपनी रणनीतियों को लेकर सक्रिय हो गई है। पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी के तहत ‘धन्यवाद रैली’ निकालने का निर्णय लिया है, जो खरमास के बाद शुरू होगी।
कांग्रेस ने 2024 लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया, जिसमें उसने 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कई सीटों पर हार-जीत का अंतर भी बेहद कम था। इस सफलता का फायदा उठाने के लिए कांग्रेस अब उन सभी सीटों पर धन्यवाद रैली निकालने का प्लान बना रही है। पार्टी का उद्देश्य इन रैलियों के माध्यम से अपना चुनाव प्रचार शुरू करना है और अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्ज कराना है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, यह रैली 14 जनवरी के बाद शुरू हो सकती है, और पहली रैली 15 जनवरी से या उसके आसपास आयोजित हो सकती है।
कांग्रेस पार्टी रैलियों के जरिए रायबरेली, अमेठी, सहारनपुर, बाराबंकी, सीतापुर और इलाहाबाद जैसे क्षेत्र में अपनी जीत को और मजबूत करना चाहती है। इसके अलावा, वाराणसी, देवरिया, बांसगांव, झांसी, कानपुर, अमरोहा, फतेहपुर सीकरी, महराजगंज, मथुरा, गाजियाबाद और बुलंदशहर जैसे अन्य क्षेत्रों में भी रैलियों का आयोजन किया जाएगा। कांग्रेस का फोकस अब यूपी की जमीनी हकीकत का आकलन करने और पार्टी के लंबे समय से निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को पुनः सक्रिय करने पर है। पार्टी मानती है कि 2024 में अच्छा प्रदर्शन करने से उसे नई ऊर्जा मिली है, जिसे अब उत्तर प्रदेश में सही दिशा में इस्तेमाल किया जाएगा।
इसके साथ ही, कांग्रेस की रणनीति पंचायत चुनावों पर भी है। पार्टी चाहती है कि पंचायत चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकी जाए ताकि संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जा सके। कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा मौका है, क्योंकि पिछले साढ़े तीन दशकों से वह यूपी की सत्ता से बाहर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की यह कवायद सिर्फ पंचायत चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य विधानसभा चुनाव 2027 से पहले अपनी चुनावी मशीनरी को दुरुस्त करना है। साथ ही यह रणनीति समाजवादी पार्टी पर दबाव बनाने का भी एक तरीका हो सकती है, ताकि भविष्य में सीट शेयरिंग को लेकर अखिलेश यादव पर प्रभाव डाला जा सके।

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