संविधान से लोकतंत्र तक का सफ़र

लोकतांत्रिक देश में संविधान का उतना ही महत्व है जितना शरीर में आत्मा का | आज के दौर में  संविधान को भी लोग अपने-अपने तरीके से व्याखित करने लगे हैं, यदि आप सरकार के पक्ष में हैं तो आप संवैधानिक कार्य कर रहे हैं और यदि आप विपक्ष में हैं तो सत्ता पक्ष गेर संवैधानिक कार्य कर रहा है | वाह रे राजनीति....
संवैधानिक शब्द का मतलब है, संविधान के नियमों का पालन करने वाला. संविधान, किसी देश या संगठन के लिए नियमों का एक समूह होता है. इसलिए, अगर कोई चीज़ संवैधानिक है, तो इसका मतलब है कि उसे उन नियमों द्वारा अनुमति दी गई है और वह निष्पक्ष और सही है 

संविधान दिवस सिर्फ एक दिन नहीं है, बल्कि हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज यानी संविधान को याद करने का दिन है। इस दस्तावेज को बनाने में डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे महान लोगों का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने ही हमारे देश के पहले कानून मंत्री के रूप में काम किया था। संविधान हमें बताता है कि हमारी सरकार कैसे चलेगी, हमारे पास क्या अधिकार हैं और हमें क्या करना चाहिए। यह हमारे देश को एक लोकतांत्रिक देश बनाता है, जहां सभी लोगों को बराबर का अधिकार होता है।  भारत में संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1949 में इसी दिन हमारे देश ने अपना संविधान अपनाया था। डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। भारत जब एक स्वतंत्र देश बना तो उसके बाद संविधान निर्माण कार्य शुरू किया गया। संविधान बनाने का कार्य 1946 में स्थापित संविधान सभा को दिया गया था जिसे डॉ बीआर अंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक समिति को संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था। आपको जानकारी दे दें कि 1946 में स्थापित संविधान सभा के अध्यक्ष भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे।

भारत के संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा. वैसे तो साल 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की मांगी को पहली बार अपनी अधिकृत नीति में शामिल किया. केवल भारतीयों को लेकर बनने वाली एक स्वंतत्र संविधान सभी की यह मांग दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान और तेज हो गई. बता दें कि संविधान सभा के सदस्य 1935 में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से चुने गए. फिर साल 1946 के दिसंबर महीने में एक संविधान सभा का गठन किया गया.
इसकी पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप में इसकी वापस बैठक हुई. संविधान सभा के इन सदस्यों के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी थी. दरअसल, भारत में कई समुदाय थे. उनकी न तो भाषा एक थी, ना एक धर्म था और न ही एक जैसी संस्कृति थी. वैसे भी जब संविधान लिखा जा रहा था, उस समय हमारा देश भारी उथल-पुथल से गुजर रहा था. भारत और पाकिस्तान का बंटवारा लगभग तय हो चुका था. बताया जाता है कि संविधान के निर्माण पर कुल 64 लाख रुपये का खर्च आया था और संविधान के बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था. भारतीय संविधान दुनिया में किसी भी संप्रभु देश का सबसे लंबा है. अपने वर्तमान रूप में, इसमें; एक प्रस्तावना, 22 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं.

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