सजावट से पहले सुधार — यही है वृंदावन की पुकार.....

BY - SHAURYA MISHRA
जब आप वृंदावन का नाम सुनते हैं तो मन में क्या छवि उभरती है?
श्रीकृष्ण की लीलाओं की भूमि? रास-रंग से भरी गलियाँ? मंदिरों में गूंजते भजन?
हां, बिल्कुल। वृंदावन वो भूमि है जहाँ श्रद्धा सांस लेती है।
लेकिन ज़रा ठहरिए... क्या आपने कभी इस पवित्र नगरी के वास्तविक हालात को करीब से देखा है?
वास्तविकता में यहां सिर्फ भक्ति ही नहीं, बल्कि समस्याएं भी सांस लेती हैं....
सरकार कहती है — बांके बिहारी कॉरिडोर सब बदल देगा।
कहा जा रहा है कि इससे दर्शन आसान होंगे, भीड़ नियंत्रण में रहेगी, और श्रद्धालुओं को सुविधा मिलेगी।
सवाल है — क्या वाकई?
क्या यह अकेला कॉरिडोर वृंदावन की वर्षों पुरानी समस्याओं का इलाज है?
आइए खुद सोचें और तय करें:
थोड़ी सी बारिश और गलियाँ जलमग्न – यह कैसा तीर्थ?
बारिश के बाद अगर गलियाँ ही डूब जाएँ, तो श्रद्धा कैसे बचेगी?
वृंदावन में भक्ति बहती है, पर अफ़सोस... रास्तों में भरा पानी नहीं बहता।
ट्रैफिक जाम: ना आगे का रास्ता, ना पीछे की गुंजाइश
भीड़ में फँसे लोग, रुकी हुई एंबुलेंस, बजते हॉर्न — क्या यही है भगवान के द्वार का स्वागत?
जब रास्ता ही ठहर जाए, तो भक्ति कैसे आगे बढ़े?
श्रद्धा रुकनी नहीं चाहिए, फिर सड़कें क्यों रुक जाती हैं?
मंदिरों में भक्तों की भीड़, पर प्रबंधन कहाँ?
श्री बांके बिहारी जी ही नहीं, श्री निधिवन, श्री राधा रमण जी, श्री रंगजी – सभी मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ती है।
पर व्यवस्था? ज़्यादातर जगहों पर दर्शन के लिए धक्का-मुक्की होती है।
क्या श्रद्धा की यह परीक्षा होनी चाहिए?
क्या आप यमुना जी में स्नान करेंगे?
वो यमुना, जिसमें श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को नाथा था, आज प्लास्टिक, गंदगी और सीवर की धारा बन चुकी है।
क्या आपको लगता है कि धार्मिक आस्था सिर्फ मंदिरों में होती है?
नहीं — वृंदावन की आत्मा यमुना जी में भी बसती है।
तो फिर क्यों नहीं सबसे पहले उनकी सफाई प्राथमिकता है?
तो सवाल यह है: क्या हम सिर्फ दिखावा चाहते हैं, या समाधान?
बांके बिहारी कॉरिडोर एक कदम है, लेकिन मंज़िल नहीं।
अगर हम सच में वृंदावन को सुधारना चाहते हैं, तो:
यमुना जी को फिर से निर्मल बनाना होगा।
ट्रैफिक और जाम से स्थायी राहत देनी होगी।
स्थानीय नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ देनी होंगी।
मंदिरों में भक्तों के लिए सुविधाजनक दर्शन व्यवस्था बनानी होगी।
अंत में — एक निवेदन
वृंदावन कोई आम शहर नहीं — यह भक्ति, संस्कृति और सेवा की प्रतीक भूमि है।
आज जब हम इस धाम को आधुनिकता की चमक में ढालना चाहते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसकी असली शोभा मंदिरों की ऊँचाई में नहीं, यमुना की शुद्धता, गलियों की सरलता, और यहाँ बसने वाले लोगों की संतुष्टि में छुपी है।
तो आइए —
हम मंदिरों में दीप जलाने के साथ-साथ व्यवस्था की ज्योति भी प्रज्वलित करें,
हम चरणामृत पीने से पहले पेयजल की गुणवत्ता भी सुधारें,
और सबसे बढ़कर,
हम यमुना जी को फिर से ऐसा बनाएँ, कि श्रद्धालु नहीं, स्वयं श्रीकृष्ण भी उस धारा में उतर आएं।
हम सब मिलकर प्रयास करें कि वृंदावन का विकास केवल आंखों से देखा न जाए,
बल्कि मन से महसूस भी किया जाए —
जहाँ यमुना फिर से निर्मल हो,
गलियाँ साफ हों,
और श्रद्धा के साथ सुविधा भी बहती हो।
क्योंकि वृंदावन सिर्फ एक धाम नहीं — हम सबकी साझा जिम्मेदारी है।
कॉरिडोर आँखों को तो सुकून देगा, लेकिन क्या व्यवस्था दिल को चैन दे पाएगी? फैसला अब आपका है.....
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