उन्नत तकनीक से जीरे की खेती कैसे करें: किसानों के लिए गाइड

भारत में मसालों की खेती में जीरे का एक विशेष स्थान है। इसकी मांग देश-विदेश दोनों में है। यदि वैज्ञानिक व उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया जाए, तो जीरे की खेती से किसान बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।
जलवायु व भूमि की आवश्यकता
जलवायु: जीरा ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगता है। बुवाई के समय हल्की ठंड और फसल पकने तक गर्म मौसम लाभकारी होता है।
भूमि: अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। pH 6.8–8.3 के बीच उपयुक्त रहता है।
उन्नत किस्में (Improved Varieties)
किस्म विशेषताएँ
RZ-19 अधिक पैदावार और रोग प्रतिरोधक
GC-1 जल्दी पकने वाली किस्म
RZ-223 झुलसा रोग के प्रति सहनशील
UC-199 निर्यात के लिए उपयुक्त
खेत की तैयारी
खेत को अच्छी तरह जोतें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
अंतिम जुताई के समय 5-7 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ मिलाएं।
खेत को समतल और खरपतवार रहित रखें।
बुवाई का समय और विधि
समय:
नवंबर के पहले सप्ताह से मध्य नवंबर तक बुवाई करें।
बुवाई विधि:
छिटकवां या रेखीय पद्धति।
कतार से कतार की दूरी: 22–30 सेमी
पौध से पौध की दूरी: 10 सेमी
बीज दर:
4-6 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त है।
बीजोपचार:
बीज को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) या थिरम से उपचारित करें।
सिंचाई प्रबंधन
पहली सिंचाई बुवाई के 10 दिन बाद करें।
इसके बाद आवश्यकतानुसार 20–25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
फसल पकते समय सिंचाई न करें, अन्यथा बीज काले हो सकते हैं।
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो तो जिंक और सल्फर का भी छिड़काव करें।
रोग व कीट नियंत्रण
1. झुलसा रोग (Blight):
लक्षण: पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे।
नियंत्रण: मैंकोजेब (0.2%) का छिड़काव करें।
2. जड़ सड़न:
नियंत्रण: कार्बेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव करें।
3. थ्रिप्स व एफिड्स (चूसक कीट):
नियंत्रण: इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 0.3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई और उत्पादन
बुवाई के 90–110 दिन बाद फसल पक जाती है।
जब पत्तियां पीली पड़ने लगें और बीज भूरा होने लगे तब फसल काटें।
छायादार स्थान पर सुखाकर मड़ाई करें।
उत्पादन: अच्छी तकनीक से 6–8 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज ली जा सकती है।
मार्केटिंग और आय
जीरे की अच्छी क्वालिटी को निर्यात बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है।
किसानों को मंडी के अलावा FPOs, एग्री स्टार्टअप्स से भी जुड़ने की सलाह दी जाती है।
जीरे की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो यह किसानों के लिए एक लाभकारी फसल साबित हो सकती है। उन्नत बीज, संतुलित पोषण, समय पर सिंचाई और कीट प्रबंधन से उत्पादन में काफी वृद्धि संभव है। इसके अलावा, निर्यात की बढ़ती मांग इसे एक कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल बना देती है।
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