थाना प्रभारी अनफसुल हसन को हाईकोर्ट से बड़ी राहत एएसआई आत्महत्या मामला हुआ खारिज
दतिया : जिले के चर्चित एएसआई प्रमोद पवन आत्महत्या प्रकरण में थरेट थाना प्रभारी रहे अनफसुल हसन को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, ग्वालियर खंडपीठ से बड़ी राहत मिली है। न्यायालय ने उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरण क्रमांक 60/2025 (थाना गोदन) को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में न तो आत्महत्या के लिए प्रत्यक्ष उकसावे के पर्याप्त साक्ष्य हैं और न ही जातीय उत्पीड़न का कोई ठोस प्रमाण,21-22 जुलाई 2025 की रात, थाना गोदन में पदस्थ एएसआई प्रमोद पवन ने थाना परिसर स्थित अपने सरकारी आवास में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।आत्महत्या से पूर्व एएसआई प्रमोद पवन ने एक वीडियो संदेश रिकॉर्ड किया था, जिसमें उन्होंने तत्कालीन थाना प्रभारी अनफसुल हसन, कुछ पुलिसकर्मियों तथा एक स्थानीय व्यक्ति पर मानसिक उत्पीड़न और जातिसूचक अपमान के आरोप लगाए थे।इस वीडियो के आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की संबंधित धाराओं एवं अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत मामला दर्ज किया था।थाना प्रभारी अनफसुल हसन की ओर से उच्च न्यायालय में यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि,मृतक एएसआई प्रमोद पवन के खिलाफ पहले से ही कई विभागीय जांचें और शिकायतें लंबित थीं।उनके खिलाफ की गई कार्रवाई पूरी तरह प्रशासनिक एवं अनुशासनिक आधार पर थी, न कि व्यक्तिगत वैमनस्य से प्रेरित,मृतक द्वारा छोड़ा गया वीडियो संदेश केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा और अवसाद की स्थिति को दर्शाता है, इसमें आत्महत्या के लिए जानबूझकर प्रेरित या षड्यंत्रपूर्वक सहयोग देने का कोई ठोस प्रमाण नहीं।मृतक स्वयं एक वरिष्ठ अधिकारी थे, यदि उन्हें किसी के व्यवहार या कार्रवाई से आपत्ति थी, तो वे उच्चाधिकारियों से संपर्क कर सकते थे, आत्महत्या जैसे कदम की आवश्यकता नहीं थी,न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ,मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फडके ने अपने आदेश में कहा आत्महत्या के लिए उकसावे के अपराध में ‘जानबूझकर प्रेरित करने’, ‘षड्यंत्र करने’ या ‘सहायता प्रदान करने’ का तत्व होना आवश्यक है। केवल कार्यस्थल का तनाव, असहमति या प्रशासनिक दबाव को उकसावे के रूप में नहीं माना जा सकता।न्यायालय ने आगे कहा कि,मृतक द्वारा छोड़ा गया संदेश केवल उसकी मानसिक वेदना को प्रदर्शित करता है। यह किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसावे का प्रमाण नहीं बनता।उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णयों का हवाला,न्यायालय ने अपने आदेश में कई सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया। इनमें प्रमुख रूप से अरनब मनोरंजन गोस्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2020) का उदाहरण दिया गया, जिसमें कहा गया था कि,किसी व्यक्ति के साथ सामान्य विवाद, असहमति या कार्य का दबाव आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं माना जा सकता।इसके अतिरिक्त न्यायालय ने यह भी दोहराया कि जब तक आरोपी के व्यवहार से स्पष्ट ‘प्रेरणा’ या ‘आत्महत्या के लिए दबाव’ सिद्ध न हो, तब तक धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा) के अंतर्गत अपराध नहीं बनता।न्यायालय का निष्कर्ष,सभी तथ्यों और साक्ष्यों का परीक्षण करने के बाद न्यायालय ने माना कि,आत्महत्या का कारण कार्यस्थल का तनाव या व्यक्तिगत असंतोष प्रतीत होता है।वीडियो में लगाए गए आरोपों से उकसावे का कोई कानूनी तत्व सिद्ध नहीं होता।जातीय उत्पीड़न के आरोप भी साक्ष्यों से प्रमाणित नहीं हैं।इस आधार पर न्यायालय ने अनफसुल हसन और अन्य सह-अभियुक्तों के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में अभियोजन की कोई वैधानिक आधारशिला नहीं बचती।,इस निर्णय के साथ दतिया जिले के पूर्व थरेट थाना प्रभारी अनफसुल हसन को इस गंभीर मामले से बड़ी राहत मिली है। न्यायालय के इस आदेश से न केवल उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्यवाही समाप्त हुई है, बल्कि यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जहां कार्यस्थल का तनाव और आत्महत्या के उकसावे के बीच की कानूनी सीमा स्पष्ट की गई है।
रिपोर्टर : नितिन कुमार दांतरे
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