प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली! जो तुम आ जाते एक बार

आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा ने साहित्य के क्षेत्र में अपना बहुत बड़ा योगदन दिया है .महादेवी ने अपनी खुबसूरत भावों के जरिये अद्भुत रचनाओं को जन्म दिया है और साहित्य के गुलदस्ते को और भी अधिक आकर्षक और खूबसूरत बनाने का काम किया है .आज हम उनकी साहित्य के खजाने से ढूढ़ कर खूबसूरत रचनाएँ आपके समक्ष पेश कर रहें है हमे उम्मीद है कि ये रचनाएँ आपको जरूर पसंद आएगी .


प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली! 
मेरे ही मृदु उर में हँस बस, 
श्वासों में भर मादक मधु-रस, 
लघु कलिका के चल परिमल से 
वे नभ छाए री मैं वन फूली! 
प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली! 
तज उनका गिरि-सा गुरु अंतर 
मैं सिकता-कण सी आई झर; 
आज सजनि उनसे परिचय क्या! 
वे घन-चुंबित मैं पथ-धूली! 
प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली! 
उनकी वीणा की नव कंपन, 
डाल गई री मुझ में जीवन! 
खोज न पाई उसका पथ मैं 
प्रतिध्वनि-सी सूने में झूली! 

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