Dhadak 2 Review: सामाजिक भेदभाव पर प्रासंगिक कहानी, लेकिन फिल्म की धड़कन धीमी पड़ती है

साल 2018 की रोमांटिक ड्रामा फिल्म 'धड़क' के सीक्वल 'धड़क 2' ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है। सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म जात-पात, ऊंच-नीच और सामाजिक भेदभाव जैसे गंभीर मुद्दों पर आधारित है। हालांकि, समीक्षक और दर्शकों से फिल्म को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। संवेदनशील विषय होते हुए भी फिल्म भावनात्मक रूप से दर्शकों को जोड़ने में चूक जाती है।

धड़क 2: सैराट से परियेरुम पेरुमल तक की यात्रा
जहां 'धड़क' साल 2016 की ब्लॉकबस्टर मराठी फिल्म 'सैराट' की रीमेक थी, वहीं 'धड़क 2' तमिल फिल्म 'परियेरुम पेरुमल' पर आधारित है। करण जौहर द्वारा प्रस्तुत इस फिल्म में भी जातिवाद, आरक्षण, अंग्रेजी भाषा का दंश, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दे उठाए गए हैं। लेकिन इस बार कहानी वह संवेदनाएं नहीं जगा पाती, जिनकी उम्मीद इस विषय से की जाती है।

क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी भोपाल के एक लॉ कॉलेज में पढ़ने वाले नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो निम्न जाति का है और आरक्षण के तहत एडमिशन पाता है। अंग्रेजी में कमजोर नीलेश की मदद उसकी सहपाठी विधि (तृप्ति डिमरी) करती है, जो जात-पात में विश्वास नहीं रखती। दोनों के बीच प्रेम पनपता है, लेकिन विधि का चचेरा भाई रोनी (साद बिलग्रामी) उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाता।

फिल्म में नीलेश को जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते रोनी उसकी हत्या की सुपारी देता है। कहानी इस संघर्ष पर केंद्रित है कि नीलेश अपने सम्मान की लड़ाई कैसे लड़ता है।

स्क्रीनप्ले की सबसे बड़ी कमजोरियां
फिल्म की पटकथा शाजिया इकबाल और राहुल बडवेलकर ने लिखी है। शुरुआती हिस्से में जातिवाद और प्रेम कहानी को स्थापित करने में फिल्म काफी वक्त लेती है, जिससे दर्शकों का धैर्य टूटता है। लॉ कॉलेज की पृष्ठभूमि होने के बावजूद, कानूनी बहसों की गंभीरता नदारद है।

शंकर (सौरभ सचदेव) का किरदार अधूरा लगता है; वह निम्न जाति के लोगों को क्यों निशाना बनाता है, इसका कोई ठोस कारण फिल्म में नहीं बताया गया। छात्र नेता शेखर (प्रियंक तिवारी) की आत्महत्या का ट्रैक भी सतही और अव्यवस्थित लगता है।

इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में जातीय अन्याय के खिलाफ कोई ठोस प्रतिरोध क्यों नहीं दिखाया गया, यह फिल्म का सबसे बड़ा सवाल बना रहता है। अंत में फिल्म को सुखद मोड़ देने की कोशिश भी बेहद कृत्रिम लगती है।

तकनीकी पक्ष और संगीत
ओमकार उत्तम सतपाल की एडिटिंग कसी हुई होती तो फिल्म की अवधि 15-20 मिनट और कम हो सकती थी। रोचक कोहली, तनिष्क बागची और जावेद-मोहसिन का संगीत भी फिल्म में भावनात्मक लय पैदा करने में विफल रहता है। कुछ संवाद अवश्य चुटीले हैं, जैसे — “मुझे पॉलिटिक्स में नहीं आना” पर प्रिंसिपल का जवाब, “यह तो केजरीवाल ने भी कहा था।”

अभिनय: सिद्धांत चतुर्वेदी का सरप्राइज पैकेज
एक्टिंग के लिहाज से सिद्धांत चतुर्वेदी फिल्म की जान हैं। नीलेश के किरदार में वह मासूमियत और जात-पात के दंश को सशक्त तरीके से पेश करते हैं। तृप्ति डिमरी विधि के किरदार के साथ पूरा न्याय करती हैं। सह कलाकारों में जाकिर हुसैन, विपिन शर्मा और साद बिलग्रामी अपने छोटे लेकिन प्रभावी रोल्स में जंचते हैं। प्रियंक तिवारी ने भी अधकच्‍चे लिखे किरदार को अपने अभिनय से संभालने की पूरी कोशिश की है।


धड़क 2 जात-पात, ऊंच-नीच और सामाजिक अन्याय जैसे ज्वलंत मुद्दों पर बात करती है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। पर फिल्म अपनी स्क्रिप्ट, निर्देशन और भावनात्मक पकड़ में ढीली पड़ती है। सिद्धांत चतुर्वेदी की परफॉर्मेंस सरप्राइज पैकेज है, लेकिन बाकी पहलुओं में फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती।

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