20 मार्च को है रंगभरी एकादशी , जानें पूजा की विधि

ANUSHREE -
हर वर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी व्रत किया जाता है. इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के संग भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-व्रत करने का विधान है.. मान्यता है कि ऐसा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु और भगवान महादेव प्रसन्न होते हैं इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली का पर्वकाल शुरू हो जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी या अमालकी एकादशी पर भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार काशी नगरी आए थे. इस दिन शिवजी के भक्त उन पर रंग, अबीर और गुलाल उड़ाते हैं. इस दिन से ही वाराणसी में रंग खेलने का रिवाज शुरु हो गया. ब्रज में होली का त्यौहार अष्टमी से शुरु होता हैं. वही वाराणसी में होली का त्यौहार रंगभरी एकादशी से शुरु होता हैं. इस दिन शिवजी को विशेष रंग चढ़ा कर मनोकामना मांगते हैं.. आए विस्तार से जानते हैं. क्या हैं विधि...
क्या हैं, रंगभरी पूजा विधि..
1 रंगभरी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और दिन की शुरुआत श्री हरि और भगवान शिव के ध्यान से करें।
इसके बाद स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें.
2 अब भगवान विष्णु का विधिपूर्वक गंगाजल से अभिषेक करें.
3 साथ ही भगवान शिव और मां पार्वती का जल से अभिषेक करें.
4 इसके बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव और मां पार्वती को पुष्प अर्पित करें.
5 अब देशी घी का दीपक जलाएं और भगवान की आरती करें.
6 विशेष चीजों का भोग लगाएं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल को जरूर शामिल करना चाहिए.
क्या हैं सही मुहूर्त....
पंचांग के अनुसार, रंगभरी एकादशी तिथि की शुरुआत 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से होगी और इसका समापन 21 मार्च को सुबह 02 बजकर 22 मिनट पर होगा। ऐसे में रंगभरी एकादशी व्रत 20 मार्च को किया जाएगा। रंगभरी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और दिन की शुरुआत श्री हरि और भगवान शिव के ध्यान से करें।
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