चूहा कैसे बना बप्पा की सवारी , गणेश उत्सव की बीच ये रहस्य जानिए ..

पार्वती के लाडले,

शिवजी के प्यारे,

लड्डू खा के जो मूषक सवारे,

वो जो है गणेश देवा हमारे,

इस वक्त गणेश चतुर्थी की धूम पूरे भारत में देखी जा सकती है,लेकिन बात जब गणेश जी की आती है तो उनके सवारी का भी का जिक्र जरूर होता है. यह हम सभी जानते हैं कि देवी–देवताओं के पास एक से बढ़कर एक सवारियां हैं, लेकिन सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान गणेश के पास सवारी के रूप में एक छोटा–सा मूषक ही क्यों? गौरी पुत्र भगवान श्री गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है पर क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया कि गणेश जी का वाहन उनके शरीर के अनुरूप क्यों नहीं है, अगर आपका ध्यान इस ओर गया होगा, तो आपको यह भी ख्याल जरूर आया होगा कि उनका वाहन किसी बलिष्ठ जीव को होना चाहिए था फिर उन्होंने चूहे को ही अपना वाहन क्यों चुना, अगर इस बात का तार्किक उत्तर तलाशें तो पता चलता है कि चूहे में भी बहुत उत्कंठा होती है जिसकी वजह से वह हर वस्तु को काट कर उसके भीतर क्या है यह जानने की कोशिश करता है . भगवान गणेश भी उसे बुद्धि प्रदान करते है जिसमें उत्कंठा कूट कूट के भरी होती है, लेकिन उनकी सवारी होने का सिर्फ यह कारण नहीं है . मूषक का भगवान गणेश का वाहन बनने के पीछे बड़ी ही रोचक कथा बताई जाती है.

गणेश चतुर्थी 2024: मूषक (चूहा) कैसे बना भगवान गणेश का वाहन?

शास्त्रो की एक प्रचलित कथा के अनुसार क्रूर प्रवृत्ति वाला नर था क्रौंच. एक बार भगवान इन्द्र ने अपनी सभा में सभी मुनियों को बुलाया. इस सभा में क्रौंच को भी आमंत्रित किया गया. यहां गलती से क्रौंच का पैर एक मुनि के पैरों पर आ गया. इस बात से क्रोधित होकर उस मुनि ने क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दिया. क्रौंच ने मुनि से क्षमा मांगी पर वो अपना श्राप वापिस नहीं ले पाए. लेकिन उन्होंने एक वरदान दिया कि आने वाले समय में वो भगवान शिव के पुत्र श्री गणेश जी की सवारी बनेंगे. क्रौंच कोई छोटा मोटा चूहा नहीं एक विशाल चूहा था जो मिनटों में पहाड़ों को कुतर डालता था. इसका आतंक इतना था कि वन में रहने वाले ऋषि-मुनियों को भी बहुत परेशान किया करता था.इसी तरह उसने ऋषि पराशर की कुटिया भी तहस-नहस कर डाली थी. महर्षि पराशर भगवान श्री गणेश जी का ध्यान कर रहे थे. कुटिया के बाहर मौजूद सभी ऋषियों ने उसे भगाने बहुत प्रयास किया लेकिन सफल न हो पाए. इस समस्या के समाधान के लिए वो भगवान शिव के पास गए और उन्हें सब कुछ बताया.

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गणेश जी ने चूहे को पकड़ने के लिए एक फंदा फेंका. इस फंदे ने चूहे का पाताल लोक तक पीछा किया और पकड़ लिया और गणेश जी के सामने ले आया. गणेश जी ने बड़ी तबाही की वजह जाननी चाही लेकिन गुस्से भरे उस चूहे ने कोई जवाब न दिया. इसलिए गणेश जी ने आगे चूहे से बोला कि अब तुम मेरे आश्रय में हो इसलिए जो चाहो वो मांग लो लेकिन महर्षि पराशर को परेशान न करो.

इस पर घमंडी चूहे ने कहा मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए. हां, अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं. इस घमंड को देखकर गणेश जी ने चूहे से कहा कि वो उसकी सवारी करना चाहते हैं. चूहे ने उनकी बात मानी और सवारी बनने को तैयार हो गया लेकिन जैसे ही गणेश जी उस चूहे के ऊपर बैठे वो उनके भारी भरकम वजन से दबने लगा. चूहे ने बहुत कोशिश की लेकिन गणेशजी को लेकर एक कदम भी आगे न बढ़ सका.चूहे का घमंड चूर-चूर हो गया और उसने गणेशजी से बोला गणपति बाप्पा मुझे क्षमा कर दें. आपके वजन से मैं दबा जा रहा हूं. इस क्षमा याचना को स्वीकार कर गणेश जी ने अपना भार काम किया और इस तरह ये मूषक गणेश जी की सवारी बना.

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