धर्मांतरण को लेकर देश के कई राज्यों में सख्त कानून, क्या धार्मिक स्थल में भी बदला जाता है धर्म ?

कैसे होता है धर्म परिवर्तन?
एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन, किसी के प्रभाव में या बहलाकर धर्म परिवर्तन कराना गैरकानूनी है, लेकिन लोग अपनी मर्जी से इन तरीको से धर्म परिवर्तन करवा सकते हैं.
धर्म परिवर्तन के बारे में आप ने कई बार सुना होगा. वहीं इस कानून के तहत एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन, किसी के प्रभाव में या बहला कर धर्म परिवर्तन कराना गैरकानूनी बताया गया है, लेकिन लोग अपनी मर्जी से भी धर्म परिवर्तन करवा सकते हैं. आइए जानते हैं विस्तार से कि अगर किसी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करना है तो इसके लिए क्या नियम हैं?
कानूनी तौर पर धर्म बदलना
कानूनी तौर में धर्म बदलने के लिए एफिडेविट बनवाना पड़ता है. इसे आपको कोर्ट में वकील से बनवाना पड़ेगा. साथ ही इस एफिडेविट में अपना बदला हुआ नया नाम, बदला हुआ धर्म और एड्रेस लिखना होगा. इसमें पहचान पत्र भी देना होता है. इसे नोटेरी अटेस्ट करवाया जाता है. साथ ही आपको राष्ट्रीय दैनिक अखबार में अपने धर्म परिवर्तन की जानकारी का विज्ञापन देना होता है.
धार्मिक स्थल पर जाकर धर्म बदलना
धर्म बदलने का एक और तरीका है, जिसमें आप धार्मिक स्थल पर जाकर धर्म बदल सकते हैं. अगर किसी शख्स को हिंदू धर्म में आने है तो उसे मंदिर के पुजारी शुद्धिकरण संस्कार करके उसे हिंदू बना सकते हैं. धर्म परिवर्तन विश्व हिंदू परिषद और आर्य समाज मंदिर में करवाया जाता है.
संविधान की मंजूरी के बावजूद हर राज्य में अलग नियम
भारत के संविधान में धर्मांतरण को लेकर कोई स्पष्ट अनुच्छेद नहीं है. अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का जिक्र है. इसमें कहा गया है कि भारत का हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की आजादी है. जिस कारण हर राज्य ने अपना अलग-अलग नियम बना लिया है.
इन राज्यों में ये है सजा ओडिशा ने उठाई थी सबसे पहले आवाज
देश में लगातार ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें लोगों का धर्मांतरण कराया जा रहा है। हालांकि, स्वेच्छा से अपने धर्म को छोड़कर किसी दूसरे धर्म को अपनाना अपराध नहीं है, लेकिन यदि कोई लालच देकर, जबरन या ब्लैकमेल करके धर्मांतरण कराता है, तो इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।
देश में सबसे पहले धर्मांतरण पर ओडिशा राज्य में कानून बनाया गया था. यहां धर्मांतरण विरोधी कानून साल 1967 में लागू किया गया. इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपये तक का जुर्माना है. वहीं मध्यप्रदेश में धोखाधड़ी से कराया गया धर्मांतरण भी अपराध माना गया, जिसके लिए अधिकतम 10 साल की कैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने है. छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण से पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है.
संविधान में नहीं कोई स्पष्ट अनुच्छेद
भारत के संविधान में धर्मांतरण को लेकर कोई स्पष्ट अनुच्छेद नहीं है। अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि अपनी स्वेच्छा से भारत के हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की आजादी है। इसको लेकर कई बार राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की अपील की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इसको लेकर कोई फैसला नहीं
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