देवलस का सूर्य मंदिर: एक पौराणिक आस्था का अद्वितीय केंद्र
उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के मोहम्मदाबाद गोहाना तहसील क्षेत्र में स्थित देवलस का सूर्य मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं और धार्मिक आस्थाओं का भी प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर की खासियत राजा विक्रमादित्य से जुड़ी एक अद्भुत कथा से जुड़ी है, जो इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाती है।
विक्रमादित्य और सूर्य भगवान की कथा
मंदिर के पुजारी अजीत मिश्रा के अनुसार, यह मंदिर उस समय प्रसिद्ध हुआ जब राजा विक्रमादित्य को सूर्य भगवान के क्रोध का सामना करना पड़ा था। राजा विक्रमादित्य, जिनका शासन धर्म और न्याय के लिए प्रसिद्द था, ने सूर्य भगवान की पूजा और यज्ञ के लिए देशभर के प्रमुख सूर्य मंदिरों की यात्रा करने का संकल्प लिया।
उनकी इस यात्रा के दौरान वे देवलस के सूर्य मंदिर में पहुंचे, जहां उन्होंने कठिन तपस्या और यज्ञ के द्वारा सूर्य भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास किया। राजा विक्रमादित्य की श्रद्धा और समर्पण को देखकर सूर्य भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके जीवन के सभी कष्ट समाप्त कर दिए।
विक्रमादित्य की चौखट
देवलस सूर्य मंदिर की एक और विशेषता है यहाँ स्थित "विक्रमादित्य की चौखट"। यह चौखट उस स्थान का प्रतीक मानी जाती है, जहां राजा विक्रमादित्य ने अपनी तपस्या और प्रार्थना की थी। यह चौखट श्रद्धालुओं के लिए एक चमत्कारी स्थल है, जहाँ बैठकर लोग अपने दुखों से मुक्ति पाने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
पुजारी अजीत मिश्रा बताते हैं, "विक्रमादित्य की चौखट आज भी चमत्कारी मानी जाती है। यहां सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।" इस स्थान पर श्रद्धालु न केवल आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, बल्कि उन्हें मानसिक शांति और आस्था का अनुभव भी होता है।
धार्मिक महत्व
देवलस का सूर्य मंदिर सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था और विश्वास का भी प्रतीक है। यहाँ आने वाले भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति के लिए सूर्य भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर में आयोजित होने वाले यज्ञ और पूजा-पाठ के दौरान यहां का वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है, और श्रद्धालु यहां आकर अपने जीवन की सारी परेशानियों से छुटकारा पाते हैं।
देवलस सूर्य मंदिर न केवल अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह राजा विक्रमादित्य की तपस्या और उनके जीवन के अद्भुत मोड़ को भी संरक्षित करता है, जो आज भी श्रद्धालुओं को प्रेरणा देता है
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