महाकुंभ के बीच ही जाने लगे नागा साधु , काशी में खेलेंगे मसान की होली!

प्रयागराज का महाकुंभ इस बार भी एक अनोखा और जादुई अनुभव साबित हो रहा है .. संगम की पवित्र जलधारा में श्रद्धालु अपनी आस्था की डुबकी लगा रहे है , और देश भर के अखाड़ों के नागा साधु भी इस महासंगम का हिस्सा बनने पहुंचे थे.... ये साधु न केवल अपनी तपस्या और साधना के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि इनका हर कदम एक रहस्य और शक्ति से भरपूर होता है..... महाकुंभ में ये साधु आते हैं, संगम में स्नान करते हैं, और फिर भगवान से आशीर्वाद लेकर अपने जीवन की राह पर आगे बढ़ते हैं...मगर अब ये नागा साधु महाकुंभ के बीच में ही प्रस्थान करने लगे हैं .. ऐसे में बहुत से लोगों के मन में एक ही सवाल है कि आखिर महाकुंभ तो महाशिवरात्रि तक चलेगा, तो ये नागा साधु वापस क्यों जा रहे हैं?
दरसल ये सच है कि नागा साधु हमेशा अपनी साधना और ध्यान में लीन रहते हैं.. ये न तो किसी आलीशान महल में रहते हैं, न ही किसी आरामदायक जीवन का हिस्सा होते हैं.. जंगलों, पहाड़ों, और आश्रमों में इनकी साधना का एक अलग ही संसार होता है। लेकिन जब कुंभ मेला लगता है, तो ये साधु और संत अपने अखाड़े के साथ संगम की धरती पर पहुंचते हैं, जहां वे अमृत स्नान करते हैं, जिसे एक खास पुण्य की प्राप्ति का रास्ता माना जाता है.. इस बार का पहला अमृत स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन हुआ था, फिर मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के दिन भी यह स्नान हुआ..अमृत स्नान साधु-संतों के लिए एक तरह से जीवन का सबसे खास पल होता है। एक विश्वास है कि इस स्नान से उन्हें एक हजार अश्वमेघ यज्ञों का पुण्य मिलता है....इसका मतलब यह है कि ये स्नान साधु-संतों के लिए एक अनमोल आशीर्वाद है, जो उन्हें उनके साधना के रास्ते पर और भी दृढ़ बनाता है.... स्नान के बाद, वे फिर ध्यान में मग्न हो जाते हैं ..इसीलिए वो वापस जा रहे हैं ...लेकिन इनमें से कुछ नागा साधू काशी भी जा रहे हैं ... और काशी जाने के पीछे भी एक खास रहस्य है ..
दरसल अब आने वाले दिनों में नागा साधु वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन और शिवरात्रि उत्सव में भाग लेने वाले हैं ... अखाड़ों की जमातें काशी में एकत्रित होंगी और मशान की होली खेलेंगी. ये विशेष होली महादेव के अवतारों में से एक "मशाननाथ" को समर्पित होती है और नागा संन्यासियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसमें जलती जिताओं की भस्म से होली खेली जाती है ... जो देखने में बड़ी भयावय लगती है ... मगर नागा संन्यासियों की साधना का हिस्सा होती है .
जब इस बार का महाकुंभ सारी दुनिया देख रही है ...तो एक बात भी सबकी समझ आई है कि नागा साधु केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए नहीं जाने जाते, बल्कि इनका ऐतिहासिक महत्व भी है. ये संन्यासी मुगलों और ब्रिटिश शासन के दौरान सनातन धर्म की रक्षा के लिए युद्ध में भी उतरे थे. तलवार, त्रिशूल, भाला और धनुष जैसे अस्त्र-शस्त्र चलाने की विधिवत शिक्षा इन्हें दी जाती है. यही कारण है कि इन्हें सनातन धर्म के योद्धा संन्यासी भी कहा जाता है.
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