क्यों लगता है माता शीतला को बासी खाने का भोग

हिंदु धर्म में अलग अलग तिथियों का विशेष महत्व होता है, ये तिथियां अलग अलग देवी देवताओं से जुड़ी होती है , और इन सभी के अलग अलग नियम होते है , आज हम जिस तिथि के बारें में आपकों बताने जा रहें है , इसका एक अनूठा नियम है , और इस दिन की पूजा विशेष तरीके से की जाती है , हम बात कर रहें है शीतला अष्टमी की ये अष्टमी होली के 8 दिन बाद पड़ती है , और इस दिन माता शीतला की पूजा कि जाती है , साथ ही साथ इस दिन माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है  . 

हिंदु धर्म में अलग - अलग तिथियां होती है , जो एक विशेष देवी देवता को समर्पित होती है साथ ही साथ , इन तिथियों पर अलग अलग नियमों के अनुकूल पूजा कि जाती है , जैसै कि शीतला अष्टमी की पूजा , ये पूजा विशेष रूप से कि जाती है , ये तिथि पड़ती है होली के 8 दिन बाद और इस दिन भगवान को माता शीतला को बासी खाने का भोग लगता है , लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी और एक महत्व है , खैर आपकों बता दें कि इस दिन को बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है , अब बतातें है आपकों कि इस दिन माता रानी को बासी खाने का भोग क्यों लगता है दरसल शीतला अष्टमी सर्दियों के मौसम खत्म होने का संकेत होता है. इसे सर्दी क मौसम का आखिरी दिन माना जाता है. ऐसे में शीतला माता को इस दिन बासी खाने का भोग लगाने की परंपरा है. हालांकि भोग लगाने के बाद उस बासी खाना खाना सही नहीं माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को निरोगी सेहत का आशीर्वाद देती हैं. गर्मी के मौसम में अधिकतर लोग बुखार, फुंसी, फोड़े, नेत्र रोग के शिकार हो जाते हैं, ऐसे में शीतला सप्तमी की पूजा करने से इन बीमारियों से बचाव होता है. तो वहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला दाल लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं लेकिन राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया.राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हुईं और शीतला माता के क्रोध से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल दाने होने लगे. लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी. इसके व्याकुल राजा विराट ने माता से माफी मांगी और राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, इसके बाद शीतला माता  का क्रोध शांत हुआ था . और तबसे माता शीतला को ठंडे और बासी खाने के भोग लगाने की परंपरा है , 

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