कथावाचक की गद्दी को व्यास पीठ क्यों कहा जाता है?


भारत सनातनियों का देश हैं , यहां लाखों संत मुनि रहते है .वहीं सनातन धर्म में श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, नर्मदा पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, रामचरितमानस सहित अनेकों ग्रंथ भी हैं , जिनका वाचन हजारों कथा वाचक करते हैं , और करोड़ो लोग इन कथाओं को सुनने जाते हैं, इनसे प्रेरणा लेते हैं ..

करपात्र प्राकट्योत्सव - चौदहवाँ दिन-भक्ति प्रभु की प्रियतमा -मुरलीधर जी  महाराज - Live UP Web

जब भी कथावाचक पुराणों का या श्रीमद्भागवत गीता का या फिर रामकथा का वाचन करते हैं, तो जिस स्थान पर कथावाचक बैठते हैं, उसे व्यास पीठ या व्यास गद्दी कहते हैं, ये तो सभी को पता है , लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता है , ये सभी को पता नहीं है . तो चलिए बताते हैं कि कथावाचक की गद्दी को व्यास पीठ क्यों कहा जाता है . 

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सनातन धर्म में श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, नर्मदा पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, रामचरितमानस जैसे कई ग्रंथ है , यहां इन ग्रंथों को केवल किताब नहीं माना जाता , बल्कि इनको पूजा भी जाता है . इनकी वैसे ही पूजा की जाती है, जैसे भगवान की , वहीं बात अगर महाभारत ग्रंथ की करें तो  महाभारत ग्रंथ सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है. महर्षि वेदव्यास ने इसकी रचना की थी. 

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कहा जाता है कि गणेशजी ने वेदव्यास से सुनकर महाभारत का लेखन किया था. व्यास मुनि महर्षि पाराशर और केवट कन्या वेदवती के पुत्र थे. यह व्यास पीठ उन्हीं को समर्पित है. व्यास मुनि को संतों और देवों का प्रमुख माना जाता है, इसलिए किसी भी कथा में व्यास पीठ की पूजा का महत्व है, और कथा सुनाने वाले को व्यास पीठ पर ही बैठाया जाता है .वर्तमान में जितने भी साधु, संत, कथावाचक हैं, वह जिस पीठ पर बैठकर कथा कहते हैं, उसे व्यास पीठ या व्यास गद्दी कहते हैं.

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