सतपुड़ा की घनी वादियों में का अनोखा धार्मिक महत्व
मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमाओं से सटे सतपुड़ा पर्वत की घनी वादियों में स्थित परासिया विधानसभा क्षेत्र, अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ स्थित दो प्रमुख धार्मिक स्थल – घटामाली नदी के जलप्रपात और गोमुख जलधारा – न केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक हैं, बल्कि हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाले ऐतिहासिक मेलों के आयोजन स्थल भी हैं। इन मेलों का आयोजन खासतौर पर देव उठनी ग्यारस के समय होता है, और यह क्षेत्रीय लोगों के लिए अत्यधिक आस्थाओं से जुड़ा हुआ है।
परासिया विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत डुंगरिया तीतरा में स्थित घटामाली नदी के जलप्रपात के पास माँ देवरानी दाई का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक आस्था का प्रतीक है, जहाँ लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं। वहीं, ग्राम पंचायत मानकादेही में अवरिल बहने वाली गोमुख जलधारा के पास स्थित शिव मंदिर भी इस क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इन दोनों स्थानों पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशेष रूप से विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी आस्था व्यक्त करने और देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए आते हैं।
इन मेलों की एक विशेष मान्यता भी है। देवरानी दाई मंदिर में आने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। विशेष रूप से यह मान्यता प्रचलित है कि यदि किसी व्यक्ति का कोई जानवर गुम हो जाता है, तो वह जानवर को गिरमा मंदिर के पास बांधकर वहाँ मनोकामना करता है, और पशु जल्द ही लौट आता है। यही कारण है कि यह मंदिर और मेला आसपास के क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के स्थानों में भी प्रसिद्ध हो गया है। लोग यहाँ अपने परिवार, मित्रों और प्रियजनों की सलामती के लिए आकर दुआ करते हैं और उनके मन की इच्छाएँ पूरी होती हैं।
इस मेले का आयोजन हर साल मंदिर समिति द्वारा किया जाता है, जो मेले के दौरान सभी व्यवस्थाओं की देखरेख करती है। मंदिर समिति मेले के दौरान पानी, बिजली, सड़क, सफाई और सुरक्षा जैसी सभी आवश्यक सुविधाओं का ध्यान रखती है। इन व्यवस्थाओं का प्रबंध करने के लिए मेले की नीलामी से प्राप्त राशि का उपयोग किया जाता है। जो अतिरिक्त धनराशि बचती है, वह मंदिर के सौंदर्यीकरण और निर्माण कार्यों पर खर्च की जाती है। यह मेला 15 दिनों तक चलता है, और इस दौरान व्यापारी भी दूर-दूर से आते हैं, जो मेला क्षेत्र में अपनी दुकानें लगाते हैं। इस प्रकार, मेले का आयोजन सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी क्षेत्र की गतिविधियों में एक विशेष योगदान करता है।
मेले के दौरान श्रद्धालु न केवल धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेते हैं, बल्कि यहाँ की स्थानीय संस्कृति और पारंपरिक व्यंजनों का भी आनंद उठाते हैं। मेले में व्यापारी अपनी दुकानों पर विभिन्न प्रकार के सामान बेचते हैं, और यहाँ का वातावरण जीवंत और रंगीन हो जाता है। साथ ही, इस मेले में लोक कला, संगीत, नृत्य और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, जो लोगों के बीच एकता और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। यह मेला परासिया क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को जीवित रखने का एक माध्यम बन चुका है।
इस प्रकार, सतपुड़ा की वादियों में स्थित ये ऐतिहासिक मेले न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और फैलाने का एक अनमोल स्रोत हैं। इन मेलों में आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक न केवल देवी-देवताओं के दर्शन करते हैं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक अनुभव से भी जुड़ते हैं, जो उन्हें जीवनभर याद रहता है। इन मेलों के आयोजन से परासिया विधानसभा क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को और अधिक बल मिलता है, और यह क्षेत्र न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे देश के धार्मिक और सांस्कृतिक मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है।
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