क्षमा का पाठ पढ़ाती हुई दिनकर जी की बेहतरीन रचना .

आज हम आपके साथ दिनकर जी की एक ऐसी रचना साझा करने जा रहे है  जिस रचना के माध्यम से दिनकर जी ने क्षमा के बारे में बताया .बताया है कि किसको क्षमा शोभा देती है और किस को नहीं , दिनकर जी ने इस रचना में कहा है कि क्षमा करना उस व्यक्ति को शोभा देती है, जो ताकतवर होता ,बल्कि  उसे नहीं जो निर्बल होता है . ऐसा उन्होंने इस लिए कहा है क्योंकि जो निर्बल है वो क्या ही किसी को दंड देगा लेकिन जो ताकतवर है अगर वो माफ़ करता है तो वास्तव में महानता का कार्य होता है .

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।

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