दक्षिण भारत का स्वाद जिसने जीता दुनिया का दिल: ‘मसाला डोसा’ बना दुनिया के 50 सर्वश्रेष्ठ व्यंजनों में शामिल
नई दिल्ली, डॉ. एम.सी. वशिष्ठ। दक्षिण भारत की थाली से निकलकर दुनिया के ज़ायके तक पहुँचने वाला व्यंजन मसाला डोसा आज पूरी दुनिया का दिल जीत चुका है। अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्था सीएनएन ने इसे “दुनिया के 50 सर्वश्रेष्ठ व्यंजनों” की सूची में शामिल किया है। सुनहरी और करारी परत में लिपटा आलू मसाला, साथ में सांबर और नारियल चटनी की सुगंध — यही है दक्षिण भारत की पाक परंपरा का स्वाद, जो अब वैश्विक पहचान बना चुका है।
स्वाद की विविधता
मसाला डोसा का स्वाद हर राज्य, हर शहर और हर रेस्त्रां में थोड़ा अलग होता है। कहीं इसकी आलू की भरावन ज़्यादा मसालेदार होती है, तो कहीं चुकंदर की मिठास इसमें रंगत जोड़ती है। रेस्त्रां में यह कभी त्रिकोण आकार में परोसा जाता है, तो कभी लंबे रोल के रूप में। आज छोटे-बड़े हर शहर में मसाला डोसा की कई किस्में परोसी जाती हैं— मुट्टा (अंडा) डोसा, बेने डोसा, नीर डोसा, चिकन डोसा आदि। इसके बावजूद, सभी में मसाला डोसा ही सबसे लोकप्रिय और सर्वाधिक पसंद किया जाने वाला व्यंजन है।
चटनी और सांबर का जादू
मसाला डोसा के साथ परोसे जाने वाले सांबर और नारियल चटनी इसके स्वाद को कई गुना बढ़ा देते हैं। यह चटनी भारतीय उपमहाद्वीप की पारंपरिक देन है, जिसे आज दुनिया भर में पसंद किया जाता है। कभी यह तीखी और मसालेदार होती है, तो कभी धनिया की ताजगी या नारियल की कोमलता से भरपूर। कई बार इसमें सिरका या गुड़ की हल्की मिठास भी डाली जाती है, जो इसके स्वाद को अनोखा बनाती है।
पौष्टिकता का खजाना
मसाला डोसा सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि पौष्टिकता से भरपूर है। इसमें चावल से कार्बोहाइड्रेट, उड़द की दाल से प्रोटीन, आलू से ऊर्जा, और करी पत्ते व मसालों से विटामिन व खनिज मिलते हैं। इसके घोल को खमीर उठाने की प्रक्रिया इसे सुपाच्य बनाती है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
डोसा की लोकप्रियता का सफर
मसाला डोसा की प्रसिद्धि का श्रेय उडुपी रेस्त्रां चेन के संस्थापक के. कृष्ण राव को दिया जाता है। कर्नाटक के तुलुनाडु क्षेत्र से शुरू हुआ यह व्यंजन आज वैश्विक पहचान बन चुका है। वहीं, सरवणा भवन के संस्थापक पी. राजगोपाल ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया। उन्होंने एक छोटे से रेस्त्रां से शुरुआत की और तीन हजार करोड़ रुपये का दक्षिण भारतीय भोजन साम्राज्य खड़ा किया, जिससे वे ‘डोसा किंग’ कहलाए। कृष्ण राव ने जब डोसा को मुंबई जैसे महानगरों तक पहुँचाया, तो यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि दक्षिण भारतीय संस्कृति का प्रतीक बन गया।
संस्कृति की खुशबू
आज मसाला डोसा सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की समृद्ध पाक परंपरा का प्रतीक है। चाहे वह केरल के किसी पारंपरिक घर की रसोई हो, बेंगलुरु का सड़क किनारे टिफिन सेंटर, या लंदन का कोई शाही रेस्त्रां — हर जगह मसाला डोसा अपने करारे स्वाद और सुकून से लोगों का दिल जीत लेता है।
स्वाद बढ़ाने के पारंपरिक उपाय
चावल और उड़द की दाल को रातभर भिगोकर रखें और सुबह पीसकर घोल को खमीर उठने दें।
तवे का तापमान सही स्तर तक गर्म होने पर ही घोल की पतली परत फैलाएं।
इस घोल में उबले चावल, पोहा, अरहर या चना दाल मिलाने से स्वाद और कुरकुरापन बढ़ता है।
हल्की मेथी और सूखी लाल मिर्च डालने से खुशबू और रंग दोनों में निखार आता है।
मसाला डोसा ने अपने स्वाद, पौष्टिकता और सांस्कृतिक पहचान के दम पर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के ज़ायके को अपने स्वाद से जीत लिया है।


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