धरती पर आने वाला है बड़ा संकट! ध्रुवीय बर्फ के नीचे वैज्ञानिकों को ऐसा क्या मिला
By-Anjali Shukla
धरती के ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के तेज़ी से पिघलने को लेकर वैज्ञानिक लंबे समय से चिंतित रहे हैं, लेकिन हालिया शोध ने इन इलाकों में हो रहे एक और गंभीर परिवर्तन की ओर ध्यान दिलाया है। नई स्टडी के मुताबिक आर्कटिक और अंटार्कटिका के गहरे समुद्रों में पानी की क्षैतिज गति—जिसे मेसोस्केल स्टिरिंग कहा जाता है—अब पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ हो रही है।
समुद्री करंट में ‘अप्रत्याशित उथल-पुथल'
जर्नल में प्रकाशित इस शोध में हाई-रिज़ॉल्यूशन मॉडल की मदद से यह दिखाया गया कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दो से चार गुना तक पहुंच रही है, वैसे-वैसे ध्रुवीय महासागरों में समुद्री धाराओं की यह हलचल भी कई गुना तेज़ हो जाती है। अध्ययन के मुख्य लेखक ग्युसेओक यी के अनुसार, समुद्री बर्फ का घटता स्तर इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह है।
जब बर्फ पिघलती है तो समुद्र की सतह खुल जाती है और हवा सीधे पानी के संपर्क में आती है। इससे समुद्री धाराएं अधिक ताकतवर हो जाती हैं और टर्बुलेंस बढ़ने लगता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर मौजूदा रुझान जारी रहे, तो आने वाले दशकों में आर्कटिक और दक्षिणी महासागरों में यह क्षैतिज हलचल खतरनाक सीमा तक पहुंच सकती है, जिसका असर पूरी वैश्विक जलवायु व्यवस्था पर पड़ सकता है।
यह बढ़ी हुई हलचल क्यों खतरनाक है?
महासागरों में बढ़ रही यह उथल-पुथल महज़ पानी की हलचल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी असर पूरी पृथ्वी के पर्यावरण पर पड़ सकते हैं। समुद्री धाराएं अपने साथ ताप, पोषक तत्व, कार्बन और यहां तक कि मछलियों के शुरुआती जीवन चरण (लार्वा) को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती हैं। यदि इन धाराओं की गति और तीव्र हो जाती है, तो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का नाज़ुक संतुलन बिगड़ने का खतरा पैदा हो सकता है।
दूसरी ओर, ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से बनने वाला मीठा पानी समुद्रों के जलस्तर में इज़ाफा कर रहा है, जिससे तटीय इलाकों पर बाढ़ और कटाव का जोखिम और भी बढ़ सकता है। इस अध्ययन की सह-लेखिका जून-यी ली का कहना है कि समुद्री हलचल में यह तेजी माइक्रोप्लास्टिक जैसे खतरनाक प्रदूषकों को तेजी से फैलाने में भी मदद कर सकती है, जिससे आने वाले समय में पर्यावरण के सामने और गंभीर चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं।

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