जीवन और मृत्यु के बीच के अंतर को बयां करती हुई रचना
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इंसान जब तक जिन्दा रहता है तो आधे से अधिक समय अपने रूप को सवारने में लगा देता है .और यह भूल जाता है कि वह जिस तन को इतना सवांर रहा है और जिसको लेकर उसे इतना घमंड है वो एक दिन मिट्टी में मिलजान है. उसी इंसान के मारने के बाद की दशा को बयां करती हुई मेरी ये रचना ....
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
जो कभी चलते थे सीना तान ,
चीर निन्द्रा में सो गयें हैं आज।
खा रहें हैं काग
उनके चुन चुन आज मांस,
सिर पर बैठ गिद्ध निकाल खा रहे आँख।
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
लाल हुएं कुत्ते के मुंह , प्रफुल्लित हुआ काग।
करते नहीं थे जो कभी किसी से सीधे मुंह बात,
न सुनते थे किसी की बात।
हुई दुर्दशा देखों उनकी कैसी आज
जीभ कुत्ते नोच रहें , चील नोच रही कान
और खाल खींच रहे सियार।
हुए आनन्दित मांसभक्षी
दौड़े जा रहे दुर्गंध के पास।
सड़े मांस की तीक्ष्ण दुर्गंध
रहगुज़र को मजबूर कर रही,
बंद करने को आँख और नाक ।
था जिस तन पर बड़ा ही नाज़ ।
इत्र से महकता रहता था जो तन हमेशा,
वो तन सड़ कर दुर्गंध फैला रहा है आज।
उस तन पर क्षुद्र जन्तु कर रहे निवास।
उस तन की दुर्गंध से दूषित हो रहा वातावरण आज।
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
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