बाढ़ से खुलती उत्तर प्रदेश की लाचार व्यवस्था की पोल

उत्तर प्रदेश में बाढ़ के दौरान लाचार व्यवस्था की पोल कई कारणों से खुलती है, जिनमें बाढ़ की भविष्यवाणी और चेतावनी प्रणालियों की कमी, उचित बाढ़ पूर्व और बाद की तैयारियों का अभाव, राहत और पुनर्वास कार्यों में देरी, और जल निकासी प्रणालियों की अक्षमता शामिल है। बाढ़ के कारण गंगा, यमुना, घाघरा, और अन्य प्रमुख नदियों का जल स्तर बढ़ने से बड़े पैमाने पर जलभराव होता है, जिससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और व्यवस्था की कमियाँ उजागर होती हैं |
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे घनी आबादी वाला राज्य है, जहाँ गंगा, घाघरा, सरयू, राप्ती, गोमती और कई सहायक नदियाँ बहती हैं। मानसून आते ही ये नदियाँ उफान पर होती हैं और हर साल लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। समस्या सिर्फ प्राकृतिक आपदा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य की अव्यवस्थित, लाचार और भ्रष्ट तंत्र की पोल खोल देती है। राहत और पुनर्वास कार्यों में कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी स्पष्ट दिखती है | उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा, खासकर गोरखपुर, बहराइच, सीतापुर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी और कुशीनगर जैसे जिले हर साल बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। नेपाल से आने वाली नदियाँ बारिश के मौसम में उफान पर होती हैं और निचले इलाकों में तबाही मचाती हैं। हर साल मानसून से पहले सरकार बाढ़ प्रबंधन की तैयारियों के बड़े-बड़े दावे करती है। करोड़ों रुपये तटबंध निर्माण और मरम्मत के लिए खर्च दिखाए जाते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि तटबंध समय पर पूरे नहीं होते।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि बाढ़ प्रबंधन केवल एक "मौसमी मुद्दा" बनकर रह गया है। मानसून के बाद सरकारें इस पर ध्यान देना बंद कर देती हैं। चुनाव के समय बाढ़ पीड़ितों के आँसू और दर्द सिर्फ वोट बैंक तक सीमित होकर रह जाते हैं। दीर्घकालिक नीति, ठोस निवेश और पारदर्शी कार्यप्रणाली का अभाव ही इस त्रासदी को लगातार बढ़ा रहा है।
उत्तर प्रदेश में बाढ़ हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करती है और यह केवल प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि प्रशासनिक कुप्रबंधन की पोल खोलने वाली त्रासदी है। तटबंधों का समय पर निर्माण और मरम्मत न होना, राहत और मुआवजा वितरण में भ्रष्टाचार, तथा दीर्घकालिक योजना का अभाव इसके प्रमुख कारण हैं। इसका असर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अर्थव्यवस्था पर गहराई से पड़ता है। समस्या के समाधान के लिए ठोस तटबंध, तकनीकी पूर्वानुमान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, स्थायी पुनर्वास नीति और पारदर्शी शासन की आवश्यकता है। जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाएगी, तब तक यह आपदा हर साल प्रदेश की जनता को लाचार बनाती रहेगी।
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