प्याज की पैदावार बढ़ाने के लिए अपनाएं ये पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक

अगर किसान प्याज की खेती में पत्तों के गिरने की समस्या से परेशान हैं, तो यह लेख उनके लिए बेहद उपयोगी हो सकता है। प्याज के पत्तों का गिरना न केवल उत्पादन घटाता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। आइए समझते हैं इस समस्या के पीछे के कारण और प्रभावी समाधान:

प्याज के पत्ते गिरने के संभावित कारण

फफूंदजनित रोग (Fungal Infections):

पर्पल ब्लॉच (Purple Blotch) और डाउन मिल्ड्यू (Downy Mildew) जैसे रोग पत्तों को कमजोर करके गिरा सकते हैं।

पानी की कमी या जलभराव:

अत्यधिक पानी या लंबे समय तक सूखा रहने पर भी पत्ते गिरने लगते हैं।

कीटों का प्रकोप:

थ्रिप्स (Thrips) और एफिड्स (Aphids) जैसे कीट पत्तियों को चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं।

पोषक तत्वों की कमी:

सल्फर, पोटाश या जिंक की कमी से पत्तियां कमजोर होकर गिरने लगती हैं।

मिट्टी में संक्रमण या असंतुलन:

यदि खेत की मिट्टी में फफूंद या बैक्टीरिया पनप चुके हों तो पत्ते जल्दी गिर सकते हैं।

समस्या से निदान के लिए उपाय

1. फफूंदनाशी का छिड़काव करें

बाविस्टिन (Carbendazim) या मेंकोजेब + मेटालेक्सिल जैसे दवाओं का 10-15 दिन के अंतर से छिड़काव करें।

प्राकृतिक विकल्प: नीम का अर्क या ट्राइकोडर्मा का उपयोग भी फायदेमंद हो सकता है।

2. कीट नियंत्रण

थायोमेथोक्साम, स्पाइनेटोराम, या इमिडाक्लोप्रिड जैसी दवाएं कीटों पर असरदार हैं।

जैविक किसान नीम तेल (Neem Oil 1500 ppm) का छिड़काव कर सकते हैं।

3. पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखें

प्याज की फसल के लिए सल्फर, पोटाश, और जिंक बहुत जरूरी हैं।

15-20 दिन पर जैविक खाद (जैसे गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट) डालना भी उपयोगी होता है।

4. जल निकासी का ध्यान रखें

खेत में पानी रुकने न दें, वरना जड़ सड़न की समस्या हो सकती है जिससे पत्ते गिरने लगते हैं।

5. फसल चक्र अपनाएं

हर बार प्याज की खेती एक ही खेत में न करें, इससे मिट्टी में रोग नहीं पनपते।

अतिरिक्त सुझाव

प्याज बोने से पहले बीजोपचार करें (जैसे ट्राइकोडर्मा से)।
फसल की नियमित निगरानी करें – प्रारंभिक लक्षण पर ही कार्रवाई करें।
स्थानीय कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह लें।

प्याज के पत्तों के गिरने की समस्या का समय पर निदान किया जाए तो उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर हो सकते हैं। रोग और कीट नियंत्रण के साथ उचित पोषण और जल प्रबंधन अपनाकर किसान इस समस्या से पूरी तरह निजात पा सकते हैं।A

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