नक्सल संगठन को अब तक का सबसे बड़ा झटका-पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू भूपति ने 60 साथियों संग आत्मसमर्पण किया

गडचिरोली : माओवादियों को बस्तर अंचल में अब तक का सबसे बड़ा झटका लगने की खबर सामने आई है। नक्सल संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू दादा उर्फ़ भूपति, जो लंबे समय से वांछित और संगठन के शीर्ष नेतृत्व में सक्रिय रहे हैं, ने अपने करीब 60 साथियों के साथ महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया — ऐसी सूचना सूत्रों से मिली है।

हालांकि, पुलिस और प्रशासनिक स्तर पर इस घटना की आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की गई है, मगर सूत्रों का दावा है कि आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सलियों से पूछताछ की प्रक्रिया जारी है।

कौन हैं सोनू दादा उर्फ़ भूपति?

सोनू दादा का असली नाम मल्लोजुला वेणुगोपाल राव (Mallojula Venugopal Rao) बताया जाता है। वह तेलंगाना राज्य के करीमनगर ज़िले के मूल निवासी हैं। संगठन में उन्हें “भूपति”, “अभय”, “मास्टर” और “सोनू” जैसे नामों से जाना जाता है।
वे लंबे समय तक CPI (माओवादी) के प्रचार विभाग और दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (Dandakaranya Special Zonal Committee) के प्रमुख पद पर कार्यरत रहे।
भूपति के परिवार का भी नक्सल आंदोलन से पुराना संबंध रहा है — उनके भाई मल्लोजुला कोटेश्वर राव (किशनजी) वर्ष 2011 में मुठभेड़ में मारे गए थे। उनकी पत्नी तारक्का कुछ वर्ष पूर्व आत्मसमर्पण कर चुकी हैं।

सरकार को शांति प्रस्ताव भेजने के बाद बढ़ी हलचल

हाल के महीनों में भूपति का एक कथित पत्र चर्चा में आया था, जिसमें उन्होंने सरकार से “संवाद और शांति वार्ता शुरू करने” की अपील की थी। पत्र में यह भी स्वीकार किया गया था कि “हथियार उठाना शायद सबसे बड़ी भूल थी।”
इस प्रस्ताव के बाद संगठन के भीतर गंभीर मतभेद और आंतरिक फूट देखने को मिली। सूत्रों का कहना है कि कुछ शीर्ष कमांडर भूपति के निर्णय से असहमत थे, जबकि कई मध्यम स्तर के कैडर आत्मसमर्पण के पक्ष में झुके।

गढ़चिरौली में सामूहिक सरेंडर की खबर से हलचल

गढ़चिरौली पुलिस को इस संबंध में बीते दो दिनों से गुप्त सूचना प्राप्त हुई थी कि “दंडकारण्य ज़ोन” के कई वरिष्ठ नक्सली आत्मसमर्पण के मूड में हैं।
सूत्रों का दावा है कि भूपति ने 60 अन्य सक्रिय नक्सलियों के साथ आत्मसमर्पण की औपचारिक प्रक्रिया शुरू की है।
इस घटनाक्रम के बाद से संगठन में भारी असंतोष और अनिश्चितता का माहौल बताया जा रहा है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, सभी आत्मसमर्पित नक्सलियों से अब पूछताछ चल रही है।

अब तक की सबसे बड़ी माओवादी फूट मानी जा रही

अगर यह आत्मसमर्पण आधिकारिक रूप से पुष्टि पाता है, तो इसे माओवादी आंदोलन के इतिहास की सबसे बड़ी फूट माना जाएगा।
पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमावर्ती इलाकों में लगातार आत्मसमर्पण की घटनाएँ सामने आई हैं — किंतु इस बार एक पोलित ब्यूरो सदस्य का आत्मसमर्पण संगठन के शीर्ष ढांचे को झकझोर सकता है।

भूपति का जीवन — अध्ययनशील, पर क्रांतिकारी राह का यात्री

मल्लोजुला वेणुगोपाल राव ने वाणिज्य (B.Com) की पढ़ाई की थी।
वह छात्र जीवन से ही वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हुए और भूमिगत होकर तेलंगाना के जंगलों में सक्रिय हुए।
धीरे-धीरे वे “अभय” नाम से संगठन के शीर्षस्थ नेतृत्व में पहुँचे और विचारधारा, संगठन और रणनीति — तीनों मोर्चों पर प्रभावी भूमिका निभाई।
उन्हें “माओवादी संगठन का बौद्धिक चेहरा” भी कहा जाता था।

आत्मसमर्पण का अर्थ और असर

अगर सोनू दादा वास्तव में आत्मसमर्पण कर चुके हैं, तो इसके कई गहरे असर होंगे —

संगठन पर मनोवैज्ञानिक झटका: शीर्ष नेतृत्व के आत्मसमर्पण से जमीनी कार्यकर्ताओं में विश्वास संकट पैदा होगा।

सरकारी रणनीति को बल: पुनर्वास और शमन नीति की सफलता का बड़ा उदाहरण बनेगा।

अंदरूनी कलह तेज़: संगठन के पुराने धड़े और नवयुवक कैडर के बीच मतभेद बढ़ सकते हैं।

अधिकारिक पुष्टि का इंतज़ार

गढ़चिरौली पुलिस और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अभी तक इस घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
हालाँकि, सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में राज्य पुलिस मुख्यालय प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से विस्तृत जानकारी दे सकता है।

निष्कर्ष

“सोनू दादा उर्फ़ भूपति” का आत्मसमर्पण, यदि सच साबित होता है, तो यह न केवल माओवादी आंदोलन के इतिहास का निर्णायक मोड़ होगा, बल्कि भारत के नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति प्रक्रिया की नई शुरुआत भी मानी जाएगी।
फिलहाल पूरे बस्तर और गढ़चिरौली क्षेत्र में इस खबर को लेकर सन्नाटा और चर्चा दोनों है — लोग इंतज़ार कर रहे हैं उस आधिकारिक पुष्टि का, जो शायद आने वाले कुछ घंटों या दिनों में तस्वीर साफ़ कर देगी।

रिपोर्टर : चंद्रशेखर पुलगम 

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