उमिया संस्थान ने पर्यावरण-अनुकूल गणेश बनाने हेतु एक प्रशिक्षण एवं प्रतियोगिता का आयोजन किया

गांधीनगर : गणेश चतुर्थी हमारे देश में बहुत महत्वपूर्ण है। लोग घर पर गणपति की मूर्ति स्थापित करते हैं और कुछ दिनों तक उनकी पूजा करते हैं और फिर उन्हें जल में विसर्जित कर देते हैं। उमिया संस्थान की सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष डॉ. अनिल पटेल ने बताया कि इस त्यौहार के बाद, लाखों छोटी-बड़ी मूर्तियों को नदियों, झीलों या समुद्रों में विसर्जित किया जाता है। ये मूर्तियाँ अधिकतर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं और रासायनिक रंगों से रंगी होती हैं। ऐसी मूर्तियों को जल में विसर्जित करने से जल प्रदूषण होता है। प्रदूषित जल जलीय जीवों को प्रभावित करता है। इसलिए, जल पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण घटक है और इसे प्रदूषित होने से बचाना सभी का कर्तव्य है।
गणेश चतुर्थी उत्सव के दौरान लोगों को पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करने हेतु, उमिया संस्थान ने आज मिट्टी से पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियाँ बनाने का प्रशिक्षण देते हुए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। मूर्ति निर्माता विनोदभाई प्रजापति ने चरणबद्ध और व्यवस्थित तरीके से मूर्ति बनाने का तरीका सिखाया। उन्होंने मूर्ति बनाकर प्रदर्शन किया। उसके बाद, बच्चों ने स्वयं मूर्तियाँ बनाईं। इस प्रतियोगिता में, प्राथमिक खंड (कक्षा: 5,6,7) में 40 बच्चों और माध्यमिक खंड (कक्षा: 8,9,10) में 22 बच्चों ने मूर्ति बनाने की प्रतियोगिता में भाग लिया। इन दोनों श्रेणियों में, पहले तीन विजेताओं में से पहले को 1000 रुपये, दूसरे स्थान पर 750 रुपये और तीसरे स्थान पर 500 रुपये नकद दिए गए। सभी भाग लेने वाले बच्चों को प्रोत्साहन के रूप में 100 रुपये दिए गए। उमिया संस्थान के अध्यक्ष अशोकभाई पटेल (वकील) ने आगे कहा कि इस वर्ष उमिया मंदिर में एक पर्यावरण के अनुकूल गणेश मूर्ति स्थापित की जाएगी। भक्ति के साथ पूजा और आराधना करने के बाद, मूर्ति को नदी में फेंकने के बजाय, इसे मंदिर परिसर में पानी के एक टब में विसर्जित किया जाएगा। इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारी, ट्रस्टीगण एवं आमंत्रित अतिथिगण तथा महिला समिति की सुधाबेन, हिनाबेन आदि उपस्थित थीं। उमिया संस्थान द्वारा किए गए इस प्रयास की सभी दर्शकों एवं मंदिर में आए श्रद्धालुओं ने सराहना की।
रिपोर्टर : अमित पटेल
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