धुले में होती हैं खूनी गणपति की पूजा. हिन्दू मुस्लिम दोनों करते हैं गणपति की पूजा

पूरे भारत में आज 7 सितम्बर को गणेश चतुर्थी बड़े की धूमधाम से मनाई जा रही हैं. सनातम धर्म में गणेश चतुर्थी में लोग आगामी 10 दिनों के लिए गणपति बप्पा को अपने घरों में स्थापित करते हैं. और विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं. ऐसे में धुले शहर में गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे बड़ा इतिहास हैं, तो चलिए बताते हैं गणेश चतुर्थी मानने के पीछे का इतिहास...
धुले शहर में मानका खुनी गणपति का एक लंबा इतिहास हैं. बता दें की इस गणेश उत्सव की शुरुआत 1895 में खाबेकर गुरुजी ने की थी. यह जुलूस पुराने धुले शहर में भोई गली से निकलता हैं. इस जुलूस में भगवान गणेश पालकी में विराजमान होकर निकलते हैं. इसकी एक महान विरासत है क्योंकि इसकी स्थापना के दो-तीन वर्षों के भीतर, जब भगवान गणेश का जुलूस प्रार्थना स्थल से गुजर रहा था , तो जुलूस के अधिकार को लेकर दो समूहों के बीच विवाद हुआ, जिसके बाद विवाद मारामारी में बदल गया. उसमें कई नागरिक घायल हो गए कई नागरिक मृत्यु हो गयी. घटना को शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने गोलियां चलाई जिसके बाद विवाद शांत हुआ.
साई मस्जिद के पास से गुजरती थी यात्रा
ब्रिटिश काल में शुरू हुए इस गणेशोत्सव की यात्रा गाजेबाजे के साथ जुने धुलिया के मंदिर और साई मस्जिद के पास से गुजरती थी. विसर्जन के लिए ले जाने पर कुछ लोगों का विरोध था. ऐसे में एक सितम्बर 1895 को अनंत चतुर्दशी के दिन खांबेटे गुरुजी के नेतृत्व में पालकी में गणपति को लेकर लोग विसर्जन के लिए निकले. जब मस्जिद के पास से जाने लगे तो कुछ लोगों ने विरोध किया. बात बढ़ती गई और दोनों गुट एक-दूसरे से भिड़ गए. उस वक़्त मौके पर मौजूद अंग्रेज पुलिस कर्मचारियों ने भीड़ पर गोलीबारी की. इसमें कई लोगों की जान गई तो कई घायल हो गए. उसी दिन से इन गणपति को खूनी गणपति और उस साई मस्जिद को खूनी मस्जिद के नाम से पुकारा जाने लगा. इस घटना के बाद दोनों गुटों ने अंग्रेज सरकार के सख्त रवैये के खिलाफ प्रतिबंधक बिल पास किया. उस दिन से आज तक हर साल हिन्दू मुस्लिम मिलजुलकर गणेशोत्सव मनाते हैं. इसमें कोई भी बैंड बाजे का इस्तेमाल नहीं करता. सिर्फ ताल और मृदंग के साथ वारकरी प्रथानुसार निकलने वाली इस यात्रा में मुस्लिम भी ताल पकड़ कर नाचते हैं.विसर्जन यात्रा के दिन बप्पा की पालकी खूनी मस्जिद के पास आने के बाद मुस्लिम बड़े उत्साह से पालकी का स्वागत करते हैं. खूनी मस्जिद के सामने ही मुस्लिमों की ओर से आरती की जाती है.
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