बकरी पालन से बनिए लाखपति! जानिए दूध देने वाली बकरी की नस्ल

भारत में बकरी पालन न केवल एक परंपरागत पशुपालन व्यवसाय है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का एक सशक्त माध्यम भी बन चुका है। खासकर जब बात दूध उत्पादन की हो, तो कुछ खास नस्लों की बकरियाँ अधिक दूध देती हैं और किसानों को अच्छा लाभ प्रदान कर सकती हैं। यदि आप भी कम निवेश में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको कुछ बेहतरीन दुग्ध उत्पादक नस्लों की बकरियों का पालन करना चाहिए।

सबसे बेहतर दूध देने वाली बकरी की नस्ल: जामुनापारी

जामुनापारी बकरी को भारत की "क्वीन ऑफ बकरीज़" भी कहा जाता है। यह नस्ल उत्तर प्रदेश के इटावा, आगरा और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह रोजाना 2 से 3 लीटर तक दूध दे सकती है, और अच्छे रख-रखाव के साथ यह मात्रा 4 लीटर तक भी पहुँच सकती है।

जामुनापारी बकरी की खासियतें:

दूध उत्पादन: औसतन 200-300 दिन के लैक्टेशन पीरियड में 250 से 300 लीटर दूध देती है।

आकार में बड़ी: इनका शरीर मजबूत और लंबा होता है।

अनुकूलन क्षमता: यह नस्ल गर्म और सूखे वातावरण में भी खुद को ढाल लेती है। 

प्रजनन क्षमता: हर साल एक से दो बच्चों को जन्म देती है, जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।

अन्य अच्छी दुग्ध उत्पादक नस्लें:

1. बीताल बकरी (Beetal)

पंजाब की प्रमुख नस्ल है।
रोजाना 2-2.5 लीटर दूध देती है।
मांस और दूध दोनों के लिए लाभकारी।

2. सिरोही बकरी

राजस्थान की यह नस्ल कम संसाधनों में भी पनप सकती है।
औसतन 1.5 से 2 लीटर दूध प्रतिदिन।
गर्म जलवायु में अच्छी वृद्धि करती है।

3. तोजेनबर्ग (Toggenburg - विदेशी नस्ल)

स्विट्ज़रलैंड की नस्ल है।
प्रतिदिन 3 से 4 लीटर दूध देती है।
व्यावसायिक बकरी पालन के लिए उपयुक्त।

दूध उत्पादन से होने वाले फायदे:

घरेलू उपयोग और बिक्री दोनों संभव
दूध से बने उत्पाद (घी, पनीर, दही) से अतिरिक्त आय
बकरी का गोबर और मूत्र जैविक खाद के रूप में उपयोगी
न्यूनतम लागत में पालन और देखभाल संभव

पालन के लिए जरूरी बातें:

साफ-सुथरा और हवादार शेड बनाएं।
टीकाकरण समय पर करवाएँ।
हरी घास, सूखा चारा और दाना संतुलित रूप से दें।
नियमित स्वास्थ्य जांच करवाते रहें।

यदि आप सीमित भूमि और संसाधनों के साथ अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो जामुनापारी जैसी दुग्ध उत्पादक नस्ल की बकरी का पालन आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसकी देखभाल में ज्यादा खर्च नहीं आता और बाजार में इसके दूध की मांग भी बनी रहती है। सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ लेकर आप इस व्यवसाय को और भी लाभदायक बना सकते हैं।

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