"सही समय ज्ञात करना आसान नहीं है।"- गोविन्द माथुर

हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि गोविंद माथुर, जिन्हें आचार्य निरंजननाथ सम्मान से सम्मानित किया चुका है; उनकी रचनाओं में भावाभिव्यक्ति बहुत ही सहज ढंग से की हुई नज़र आती है। वहीं दूसरी ओर उनकी कविताओं को पढ़कर यह आभास होता है कि गोविंद माथुर ने कितने नज़दीक से मानवीय संवेदनाओं को महसूस कर उन्हें शब्दों में पिरोकर काव्यात्मक स्वरूप में प्रकट किया है कि उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो ये हमारे जीवन के ही पड़ावों को स्मृतियों की तरह संजो कर काव्य के रूप में संकलित किया गया है। आज हम आपके लिए लेकर आये हैं हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि गोविंद माथुर की कुछ कविताएँ, जिनमें कहीं "सही समय के ज्ञान का होना" बयाँ किया गया है, तो कहीं "माँ के द्वारा अपने बच्चे के लिए देखे गए सपनों" का ज़िक्र है। इसके साथ ही विरह के भावों को भी अभिव्यक्त किया गया है....।
सही समय ज्ञात करना
आसान नहीं है
अक्सर हमें सही समय का
पता नहीं होता
दीवारों पर टँगी या
कलाई पर बँधी घड़ियाँ
या तो समय से आगे होती है
या फिर समय से पीछे
शहर के घँटाघर की घड़ियाँ
बँद पड़ी रहती है कई दिनों तक
पुलिस लाइन में बजने वाले घँटों की
आवाज़ सुनाई नहीं देती इन दिनों
ऐसे में सही समय ज्ञात करना
आसान नहीं है
घड़ियाँ अगर सही भी चल रही हों
तब भी ये कहना मुश्किल है
वे समय सही बता रही है
दरअसल समय, समय होता है
आगे या पीछे हम होते है या घड़ियाँ
अच्छा या बुरा जो होता है
उसे तो होना ही है
समय अच्छा या बुरा नहीं होता
अच्छा या बुरा होता है जीवन
एक ही समय में
अनेक जीवन जी रहे होते है लोग
समय के साथ चलता है जीवन
चलते चलते ठहर जाता है जीवन
समय न ठहरता है
न मुड़ कार देखता है
मुड़ कर देखता है जीवन
समय आगे निकल जाता है।।
हर माँ का एक स्वप्न होता है
मेरी माँ भी एक माँ थी
उसका भी एक स्वप्न था।
हर बेटा अपनी माँ की
आँख का तारा होता है
भविष्य का सहारा होता है
मेरे भी चिकने पात थे।
मेरी माँ का स्वप्न था
मैं ओहदेदार बनूंगा
समाज में प्रतिष्ठित
और इज्ज़तदार बनूंगा
एक बंगले और कार का
हक़दार बनूंगा!
माँ का ये स्वप्न
न जाने कब
मेरा स्वप्न बन गया
मुझे न जाने क्यों
भाग्यशाली होने का
भ्रम हो गया।
जब माँ की साधना से
ओहदा पाने लायक हो गया
ओहदा ही कहीं खो गया!
कुछ दिन जूते घिस कर
अपने भ्रम से निकल कर
किसी ओहदेदार का
अहलकार हो गया।
मेरी माँ का विश्वास टूट गया
उसका ईश्वर रूठ गया
मैं बूढ़ी माँ की बातों से खीजता था
आक्रोश से मुट्ठियाँ भींचता था
एक दिन माँ ने आँखे बन्द कर ली
माँ का स्वप्न भी
बन्द आँखो में मर गया
मैं ख़ुश था माँ के स्वप्न के मरने से
फिर मुझे लेकर
किसी ने स्वप्न नहीं देखा
मैने भी नहीं देखा।
इस तरीके से नहीं,
पहले हमें
सहज होना होगा
किसी तनाव में
टूटने से बेहतर है
धीरे-धीरे
अज्ञात दिशाओं में
गुम हो जाएँ।
हमारे सम्बन्ध
कच्ची बर्फ से नहीं
कि हथेलियों में
उठाते ही पिघल जाएँ।
आख़िर हमने
एक-दूसरे की
गर्माहट महसूस की है
इतने दिनों तक
तुमने और मैंने
चौराहे पर खड़े हो कर
अपने अस्तित्व को
बनाए रखा है।
ये ठीक है कि
हमें गुम भी
इस ही
चौराहे से होना है
पर इस तरीके से नहीं।
पहले हमें
मासूम होना होगा
उतना ही मासूम
जितना हम
एक दूसरे से
मिलने के पूर्व थे
पहले मैं या तुम
कोई भी
एक आरोप लगाएंगे
न समझ पाने का
तुम्हें या मुझे
और फिर
महसूस करेंगे
उपेक्षा
अपनी-अपनी
कितना आसान होगा
हमारा अलग हो जाना
जब हम
किसी उदास शाम को
चौराहे पर मौन खड़े होंगे।
और फिर जब
तुम्हारे और मेरे बीच
संवाद टूट जएगा।
कभी तुम चौराहे पर
अकेले खड़े होगे
और कभी मैं
फिर धीरे-धीरे
हमें एक दूसरे की
प्रतीक्षा नहीं होगी
कितना सहज होगा
हमारा अजनबी हो जाना
जब हम सड़कों और गलियों में
एक दूसरे को देख कर
मुस्करा भर देंगे
या हमारा हाथ
एक औपचारिकता में
उठ जाया करेगा।
हाँ हमें
इतनी जल्दी भी क्या है
ये सब
सहज ही हो जाएगा
फिर हमें
बीती बातों के नाम पर
यदि याद रहेगा तो
सिर्फ़
एक-दूसरे का नाम।।
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