सही मायनों में चुनाव कब होगा और कब देश में सही और लोकतांत्रिक मुल्यों का वहन करने वाले जनप्रतिनिधि चुने जाएंगे।

गुजरात :  चंद रोज में चुनाव के नतीजे घोषित होने वाले हैं। चुनाव जो किसी भी लोकतंत्र का आधार होता है, जिससे माध्यम से जनप्रतिनिधि चुनकर 

सत्ता में आसीन होते हैं, परंतु ऐसा क्यों होता है कि,जो पार्टी सत्ता में होती है चुनाव आयोग पर प्रभाव उस पार्टी का होता है वही पार्टी बार बार चुनाव में जीत हासिल करती है??
पहले कांग्रेस थी जो लगातार सत्ता में बनी हुई थी अब भारतीय जनता पार्टी है जो अपनी मनमानी दर्ज करा रही है??
जीत चाहे जिस पार्टी की हो पूर्ण सहमति जनता की कभी नहीं होती है होगी भी कैसे जब सत्ता पक्ष का प्रभाव देश की सभी व्यवस्थाओं पर हो चाहे वह विधि व्यवस्था हो कानून व्यवस्था हो या वित्त व्यवस्था हो या लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मिडिया हो सभी पर सरकार का प्रभाव होता है सत्ताधारी पार्टी का प्रभाव होता है तो भला जीत किसकी होगी निश्चित ही सत्ताधारी पार्टी की??
कोई भी आयोग सरकार के खिलाफ नहीं जाती और न ही कोई कानूनविद सरकार के खिलाफ बोलना चाहता है?? क्यों??
क्योंकि उसे भी अपनी दुकान चलानी‌ होती है,
अपना घर चलाना होता है?
कुछ लोग जो विरोध का स्वर मुखर करते हैं उन्हें एन केन प्रकारेण रौंद दिया जाता है बर्बाद कर दिया जाता है?तो लोग ऐसी जोखिम क्यों उठाऐंगे?
यही एक बहुत बड़ा कारण है जो देश का ज्यादातर बुद्धिजीवी वर्ग चुप रहने में ही भलाई समझता है,तो भला कैसे स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण हो??
मिलावट ऐसी की आए दिन हमें अग्रेजी राज की झलक मिलती है??
प्रत्येक राज्य में अलग अलग तरह की अफसाही, तानाशाही और भ्रष्टाचार दिखाई देता है??तो फिर चुनाव और चुनाव के क्या मायने रह जाते हैं जब नतीजा सत्ताधारी पक्ष में ही होगा??
यदी सत्ता परिवर्तन हो भी जाता है तो क्या बिगड़ जाएगा?? सरकार बदल भी जाती है तो फिर वही सब करेगी जो वर्तमान सरकार कर रही है??
जनता सिवाय मोहरा के और कुछ भी नहीं,
पक्ष और विपक्ष जनता को जो सुनाती है जनता वहीं सुनती है,जिसका वक्तव्य जितना प्रभाशाली होता है जनता उसी को सच मानती है??
सही मायनों में यदि देश में परिवर्तन और सत्ता परिवर्तन करना चाहते हैं तो किसी भी व्यक्ति को दुबारा चुनाव में खड़े होने का मौका नहीं मिलना चाहिए और न ही किसी पार्टी को लगातार चुनाव में खड़े होने का मौका मिलना चाहिए इन सब चीजों के लिए संविधान में संशोधन की अवश्यकता आवश्यक है जय हिन्द

लेखक : चंद्रकांत पुजारी 
 

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