वीर राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन की कहानी

धनुर्धारी राजा अर्जुन को तो सभी लोग जानते हैं जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था, जीवन का सही अर्थ समझाया था। अपनी दिव्य और अलौकिक रुप का दर्शन कराकर इस संसार का मतलब समझाया था।
और उनका उद्देश्य हमेशा से यही था कि, गीता के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग जीवन का सही मतलब समझते रहे और बेहतर और अनुशासित जीवन जिएं।
क्योंकि संसार में कोई भी ज्ञान से ज्यादा बलवान नहीं होता है और जिन्हें ज्ञान का अंहकार हो जाता है उसका पतन निश्चित है ।
कोई भी व्यक्ति पूर्णतः ज्ञानी और शक्तिशाली नहीं हो सकता यही सहस्त्रबाहु अर्जुन ने बताया है क्योंकि सबके ऊपर कोई न कोई अधिक ज्ञानी और शक्तिशाली होता है, जैसे रावण को अपनी शक्ति और ज्ञान का अंहकार था परंतु रावण से भी शक्तिशाली राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन थे, और अर्जुन से भी शक्तिशाली उनके गुरु थे और उनके गुरु से भी शक्तिशाली स्वयं भगवान है।आइए जानते हैं परम प्रतापी राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन के बारे में-
त्रेता युग में रावण से भी एक शक्तिशाली राजा थे जिनका नाम सहस्त्रबाहु था,उनकी राजधानी महिष्मति नगरी थी जो नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित थी।राजा सहस्त्रबाहु अत्यधिक शक्तिशाली तथा पराक्रमी थे जिसनें तीनों लोकों के राजा रावण को भी पराजित कर दिया था और उसे अपने कारावास में बंदी बनाकर रखा था ।
कार्तवीर्य अर्जुन के पिता का नाम कृर्तवीर्य था, उनके कई रानियां थी लेकिन किसी को कोई संतान नहीं थी, राजा और उनकी रानियों ने पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली ,तब उनकी एक रानी ने देवी अनुसूया से इसका उपाय पूछा,तब देवी अनुसूया में उन्हें अधिक मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उपवास रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए कहा. विधि पूर्वक एकादशी का व्रत करने के कारण भगवान प्रसन्न हुवे और वर मांगने के लिए कहा तब राजा और रानी ने कहा कि प्रभु उन्हेें ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न और सभी लोकों में आदरणीय तथा किसी से पराजित न हो।भगवान ने राजा से कहा कि ऐसा ही होगा. कुछ माह के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, इस पुत्र का नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया जो सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना गया!
राजा सहस्त्रबाहु के अनेको नाम हैं, उनके
बचपन का तथा वास्तविक नाम अर्जुन था लेकिन इसी के साथ उन्हें कई अन्य नामों से भी बुलाया जाता था।
कार्तवीर्य अर्जुन-यह नाम उन्हें अपने पिता के कारण मिला। उनके पिता का नाम कृतवीर्य था जिससे उन्हें कार्तवीर्य बुलाया जाने लगा।
सहस्त्रबाहु/ सहस्त्रार्जुन/ सहस्त्रार्जुन कार्तवीर्य: सहस्त्र का अर्थ होता है एक हज़ार तथा बाहु का अर्थ होता है भुजाएं अर्थात जिसकी एक हज़ार भुजाएं हो। सहस्त्रार्जुन को अपन गुरु दत्तात्रेय के द्वारा मिले वरदान स्वरुप एक हज़ार भुजाएं मिली थी जिसके बाद उन्हें सहस्त्रबाहु/ सहस्त्रार्जुन के नाम से जाना जाने लगा।
हैहय वंशाधिपति: सहस्त्रार्जुन अपने हैहय वर्ष में सबसे प्रतापी राजा था। इसलिये उसे हैहय वंश का प्रमुख अधिपति भी
कहा गया।
माहिष्मती नरेश- महिष्मति नगरी के प्रमुख राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से जाना जाता है।
दशग्रीवजयी- लंका के दस मुख वाले राजा रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें इस नाम की उपाधि मिली थी।
सप्त द्विपेश्वर-सातों दीपों पर राज करने के कारण कार्तवीर्य को इस नाम से भी जाना गया।
राज राजेश्वर- राजाओं के भी राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से पहचान मिली। इसी नाम से उनका मंदिर भी वहां स्थित है।
सहस्त्रार्जुन का रावण के साथ भी युद्ध हुआ था
एक कथा के अनुसार लंकापति रावण को जब सहस्त्रबाहु अर्जुन की वीरता के बारे में पता चला तो वह सहस्त्रबाहु अर्जुन को हराने के लिए उनके नगर आ पहुंचा। यहां पहुंचकर रावण ने नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव को प्रसन्न करने और वरदान मांगने के लिए तपस्या आरंभ कर दी. थोड़ी दूर पर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपने पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आ गए, वे वहां जलक्रीड़ा करने लगे और अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया।प्रवाह रोक देने से नदी का जल किनारों से बहने लगा,जिस कारण रावण की तपस्या में विघ्न पड़ गया, इससे रावण को क्रोध आ गया और उसने सहस्त्रबाहु अर्जुन के साउ युद्ध आरंभ कर दिया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को युद्ध में बुरी तरह से परास्त कर दिया और बंदी बना लिया।अंततः रावण के दादा के कहने पर रावण को मुक्त किया
महिष्मति साम्राज्य वर्तमान में मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के पास महेश्वर नगर में स्थित हैं जहाँ सहस्त्रबाहु को समर्पित मंदिर भी स्थित है।
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