देश को बचाने के लिए अरावली को भी बचाना हे।
देश को बचाने के लिए अरावली को भी बचाना हे।
और अवैध बिक रही हर गली को भी बचाना हे।
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो दिल्ली से गुजरात तक लगभग 650 किलोमीटर तक फैली हुई है। यह न केवल भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी अपरिहार्य है। हाल के वर्षों में, खनन, निर्माण और निजीकरण की योजनाओं के कारण इसकी सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के कुछ आदेशों ने अनपेक्षित रूप से विपरीत प्रभाव डाला है, जबकि अन्य आदेशों का पूर्ण पालन नहीं होने से अवैध खनन जारी है। इस लेख में हम अरावली के इतिहास, उसके वैज्ञानिक, धार्मिक और तार्किक महत्व पर चर्चा करेंगे, साथ ही संरक्षण की आवश्यकता, सरकारी योजनाओं की आलोचना, सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों का उल्लेख जिनका सरकारें पालन नहीं करतीं, तथा समान उदाहरणों का विश्लेषण करेंगे। उद्देश्य है कि देश की इस प्राकृतिक संपत्ति को बचाने की आवश्यकता पर जोर दिया जाए।
अरावली का इतिहास और उसका वैज्ञानिक, धार्मिक तथा तार्किक महत्व
अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे पुरानी तहदार पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसकी आयु लगभग दो अरब वर्ष अनुमानित है। यह गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है और राजस्थान तथा हरियाणा से होकर गुजरती है। इसका उच्चतम शिखर गुरु शिखर है, जो राजस्थान के माउंट आबू में 1,722 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। भूगर्भीय दृष्टि से, यह पर्वतमाला थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वैज्ञानिक रूप से, अरावली खनिजों से समृद्ध है और जल स्रोतों का आधार है; यह कई नदियों जैसे लूनी, साहिबी और बनास का उद्गम स्थल है। यह क्षेत्र जैव विविधता का भंडार है।
धार्मिक दृष्टि से, अरावली कई पवित्र स्थलों का घर है, जहां मंदिर और तीर्थस्थल स्थानीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हैं। तार्किक रूप से, अरावली उत्तर भारत के लिए 'फेफड़े' के समान है, क्योंकि यह वायु प्रदूषण को कम करती है, जलवायु को संतुलित रखती है और मिट्टी के कटाव को रोकती है। यदि इसे नष्ट किया गया, तो दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों में रेगिस्तानीकरण बढ़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विपरीत प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की सुरक्षा के लिए कई आदेश दिए हैं, लेकिन नवंबर 2025 के फैसले ने अनपेक्षित विपरीत प्रभाव पैदा किया है। इसमें अरावली की परिभाषा को पुनः निर्धारित कर केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही 'अरावली पहाड़ी' माना गया, जिससे लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो गया। इससे खनन और निर्माण के लिए द्वार खुल गए, जबकि अदालत का इरादा एक समान परिभाषा स्थापित करना था। परिणामस्वरूप, राजस्थान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जहां पर्यावरणविदों ने इसे 'आपदा' करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट के वे आदेश जिनका सरकारें पालन नहीं करतीं
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली संरक्षण के लिए कई सख्त आदेश जारी किए हैं, लेकिन इनका पूर्ण पालन नहीं होने से अवैध खनन जारी है। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- *2002 का आदेश (टी.एन. गोडावरमन मामले में)*: हरियाणा और राजस्थान में अरावली क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। इसके बावजूद, अवैध खनन खुलेआम जारी रहा, जिससे कई पहाड़ियां पूरी तरह गायब हो गईं।
- *2009 का आदेश*: हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात जिलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। फिर भी, प्रवर्तन की कमी के कारण अवैध खनन और अतिक्रमण बढ़ता रहा।
- *मई 2024 का आदेश*: चार राज्यों (दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात) में नई खनन लीज या नवीनीकरण पर रोक लगाई गई। इसके बावजूद, अवैध खनन की रिपोर्टें आती रहीं, और पूर्ण प्रतिबंध के अभाव में माफिया सक्रिय रहे।
- *नवंबर 2025 का आदेश*: नई खनन लीज पर रोक के साथ सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तैयार करने का निर्देश दिया गया। हालांकि, पहले के आदेशों की तरह, जमीनी स्तर पर अवैध गतिविधियां रुकने के बजाय जारी हैं।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि अदालती आदेशों के बावजूद, राज्य सरकारें और केंद्र पर्याप्त प्रवर्तन नहीं कर पातीं, जिससे अवैध खनन माफिया फल-फूल रहे हैं।
क्यों बचानी चाहिए अरावली की छोटी पहाड़ियां और पेड़
अरावली की छोटी पहाड़ियां और पेड़ पर्यावरणीय संतुलन के लिए आवश्यक हैं। ये पहाड़ियां रेगिस्तान के विस्तार को रोकती हैं, जल संचयन करती हैं और वन्यजीवों को आश्रय प्रदान करती हैं। पेड़ वायुमंडल में आर्द्रता बनाए रखते हैं और वर्षा को बढ़ावा देते हैं। यदि इन्हें नष्ट किया गया, तो दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण और जल संकट गहराएगा। भूजल भंडार इन पहाड़ियों से जुड़े हैं। छोटी पहाड़ियां भी मिट्टी के कटाव को रोकती हैं और जैव विविधता को बनाए रखती हैं।
सरकारों की योजनाएं: बड़ा दिखाकर छोटी चीजें बेचने का प्लान
कई सरकारें सार्वजनिक संपत्तियों को निजी हाथों में बेचने की योजनाएं बनाती हैं, जहां विकास का बड़ा लाभ दिखाकर छोटे-छोटे क्षेत्रों को बेच दिया जाता है। अरावली में भी खनन और निर्माण के नाम पर भूमि निजी डेवलपर्स को सौंपी जा रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन इसका उदाहरण है। इससे राष्ट्रीय संपत्तियां कॉरपोरेट लाभ के लिए बेची जा रही हैं।और ज्यादातर किस्से में ऐसा भी देखा गया हे कि बहुत बड़ी चीज या संपति को बेचने का या निजीकरण दिखाकर उससे दो गुनी छोटी सरकारी संपतिया बेच दी जाती हे या उसका निजीकरण कर दिया जाता हे।
गुजरात में गिर जंगल: एक महत्वपूर्ण उदाहरण
गुजरात का गिर जंगल एशियाई शेरों का एकमात्र प्राकृतिक आवास है। हाल ही में, गिर अभयारण्य के आसपास कई अवैध रिसॉर्ट और फार्महाउस सील किए गए। गुजरात हाई कोर्ट के निर्देशों पर दर्जनों इकाइयां सील हुईं। यह उदाहरण दर्शाता है कि कैसे निजी हितों ने प्राकृतिक संपत्तियों को खतरे में डाला, लेकिन कानूनी हस्तक्षेप से बचाव संभव है। लेकिन यहां उल्टी गंगा बह रही हे। और गुजरात का गिर और ऐसी कही सारी संपतिया हे जो पहले विकास के नाम पे शुरू हुई और विनाश होने के बाद ख्याल आया। कही जगह से शेरो का भी पलायन होना चालू गया है।
देश की संपत्ति बेचने वालों से गली और अरावली दोनों बचानी है।
देश की प्राकृतिक संपत्तियां राष्ट्रीय धरोहर हैं, जिन्हें निजीकरण से बचाना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्त पालन न होने से अवैध गतिविधियां बढ़ रही हैं। हमें अपनी गलियों से लेकर अरावली तक सब कुछ बचाना है, क्योंकि ये हमारी पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पहचान हैं। 'अरावली बचाओ' जैसे आंदोलन इसी दिशा में प्रयासरत हैं। सरकारों को संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यदि हम अब नहीं जागे, तो अपूरणीय क्षति होगी। अरावली को बचाना राष्ट्रीय गौरव का प्रश्न है। जिस भी सरकार ने देश के संविधान और देश के प्रति वफादारी की शपथ ले के कोई भी नेता का पद लिया हो और वो देश की संपतियों को बचा न सके उस नेता को भविष्य में धिक्कार और देशद्रोही की नजर से देखा जाएगा यह बात हर पक्ष के हर नेता अपने दिमाग में बिठाले के इतिहास एक युग पूरा होने के बाद ही लिखा जाता हे जिसमें सच्चाई के साथ आईना दिखाया जाता हे।।
अंत में एक कवि की रचना याद आ रही हे।।
जमी बेच देंगे , जगह बेच देंगे । शहीदों के सर का कफ़न बेच देंगे।
कलम के सिपाही अगर न जगेंगे तो वतन के ये नेता वतन बेच देंगे।
जय हिन्द।।

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