जिन्हें देश ने गुरु माना, उनके गुरु कौन ? गुरु पूर्णिमा 2025 स्पेशल
हर युग में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके एक वाक्य से जीवन की दिशा बदल जाती है।जिनकी वाणी से भटके हुए रास्ते मंजिल में बदलते हैं।जिनकी आंखों में झांक कर लोग परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता देख लेते हैं।आज भारत ऐसे ही कुछ महान गुरुओं को पूज रहा है।गुरु पूर्णिमा का ये दिन सिर्फ एक तिथि नहीं, ये अवसर है — कृतज्ञता का, समर्पण का, और आत्मा को झुकाकर उस प्रकाश के आगे नमन करने का, जिसने हमें अंधकार से उबारा।लेकिन एक सवाल जो अक्सर अनसुना रह जाता है...जिन्हें देश ने गुरु माना, उनके गुरु कौन थे?
आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि श्रद्धा का वो पर्व है जहां शिष्य अपने गुरु को नमन करता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन जन्मे थे वेदव्यास – जिनकी लेखनी ने महाभारत और 18 पुराणों जैसे शाश्वत ग्रंथ रचे..तो आईए इस दिनजानते हैं, उन गुरुओं के गुरु के बारे में — जिनके चरणों से निकले ज्ञान ने देश को दिशा दी।
प्रेम में समर्पित जीवन – राधारानी के अनन्य भक्त, प्रेमानंद जी महाराज

1972 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल गांव में जन्मे अनिरुद्ध कुमार पांडे आज पूरे भारत में प्रेमानंद जी महाराज के नाम से विख्यात हैं। राधारानी के चरणों में समर्पित इस संत के प्रवचन सुनने के लिए हजारों लोग वृंदावन पहुंचते हैं।धार्मिक वातावरण में पले-बढ़े प्रेमानंद जी का झुकाव आध्यात्म की ओर बहुत कम उम्र में हो गया था। पांचवीं कक्षा में ही उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ शुरू कर दिया था, और मात्र 13 वर्ष की उम्र में घर छोड़ कर ब्रह्मचारी जीवन अपना लियाप्रे..मानंद जी महाराज वाराणसी पहुंचे, जहां उन्होंने गंगा किनारे तपस्वी जीवन की शुरुआत की। तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन – वो भी संयोग से मिले तो, अन्यथा केवल गंगा जल। कई दिन तो भूखे ही बीतते थे, लेकिन साधना की अग्नि से उनका आत्मबल और तेज ही बढ़ा।
वाराणसी के एक संत की प्रेरणा से श्रीराम शर्मा द्वारा आयोजित रासलीला देखने पहुंचे और वहीं कुछ दिन बिताए। इस दौरान राधा-कृष्ण भक्ति ने ऐसा आकर्षित किया कि वे सीधे मथुरा और फिर वृंदावन आ गए। यहां शुरू हुई उनकी नई साधना – रोज वृंदावन परिक्रमा, बांके बिहारी के दर्शन और राधारानी के चरणों में डूब जाना।और फिर उनके जीवन में आए संत श्रीहित गौरांगी शरण जी महाराज, जो प्रेमानंद जी के गुरु बने।गुरु की सेवा में उन्होंने दस वर्ष से भी अधिक समय बिताया। उनके आशीर्वाद और सत्संग से प्रेमानंद जी ने सहचरी भाव को अपनाया — यानी राधा के सेवक बनकर जीवन जीना।
अंधकार में जन्म, प्रकाश से जीवन – जगद्गुरु रामभद्राचार्य की प्रेरक गाथा

भारत की आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर विराजमान हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य। जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के एक छोटे से गांव सांडीखुर्द में हुआ। बचपन का नाम था गिरधर मिश्र। दुर्भाग्यवश, दो महीने की उम्र में ही आंखों की रोशनी चली गई।लेकिन जिस बालक की आंखें बंद थीं, उसका विवेक खुला था। उनकी स्मरणशक्ति, वाणी और संस्कृत पर अधिकार इतना तीव्र था कि उन्होंने आगे चलकर 22 भाषाएं सीखीं और 80 से अधिक ग्रंथों की रचना की।उन्होंने पंडित रामप्रसाद त्रिपाठी से संस्कृत की शिक्षा ली और फिर पंडित ईश्वरदास महाराज से गुरु मंत्र प्राप्त किया। बाद में वे गुरु राम चरण दास जी महाराज के सान्निध्य में आए और यहीं से उन्होंने रामानंदी संप्रदाय की दीक्षा ग्रहण की।इसी दीक्षा ने उन्हें बनाया रामकथा वाचक, भाष्यकार, और तुलसी पीठाधीश्वर।
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राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही, जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी गवाही से पूरे केस की दिशा मोड़ दी।
देखा जाए तो गुरु – वो नहीं जो बस ज्ञान देता है, बल्कि वो है जो आत्मा को जगाता है.....इन दोनों महान संतों की यात्रा हमें यही सिखाती है कि गुरु खुद रोशनी हैं, लेकिन किसी की प्रेरणा और तप से वो दीपक बनते हैं।तो इस गुरु पूर्णिमा, जब आप अपने गुरु को प्रणाम करें,तो एक बार उन गुरुओं के गुरु को भी नमन कर लीजिए —जिनके कारण आपके गुरु आज आपके जीवन की राह बन सके।

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