मैसेज आया,समस्या वहीं की वहीं

हरदोई - आज शिकायत दर्ज करना कठिन नहीं रहा। मोबाइल में कुछ क्लिक, एक कॉल या पोर्टल पर दर्ज विवरण और शिकायत सरकारी सिस्टम का हिस्सा बन जाती है। संदेश आता है कि आपकी शिकायत स्वीकार कर ली गई है। यहीं से आम आदमी को उम्मीद बंधती है कि अब शायद उसकी बात सुनी जाएगी। कुछ समय बाद दूसरा संदेश आता है - आपकी शिकायत का निस्तारण कर दिया गया है। कागजों और रिकॉर्ड में मामला बंद हो जाता है। लेकिन जब शिकायतकर्ता अपनी समस्या की ओर देखता है, तो हालात वही के वही नजर आते हैं। परेशानी खत्म नहीं होती, सिर्फ फाइल बंद हो जाती है।नियमानुसार,जब किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के खिलाफ शिकायत होती है, तो उसकी जांच उससे एक स्तर ऊपर के अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। इसका उद्देश्य यही होता है कि जांच निष्पक्ष रहे और शिकायतकर्ता को भरोसा मिल सके। लेकिन कई बार देखने में आता है कि जांच की आख्या उसी कार्यालय स्तर पर, या फिर उसी अधिकारी के अधीनस्थ द्वारा तैयार कर दी जाती है, जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज होती है। इतना ही नहीं,अलग-अलग विषयों पर की गई शिकायतों में भी कई बार एक जैसी जांच आख्या लगाई जाती है। शब्द बदल जाते हैं, लेकिन निष्कर्ष वही रहता है। कहीं-कहीं ऐसा भी सामने आया कि एक ही पीड़ित की पुरानी फोटो को दूसरी शिकायत में भी दोबारा अपलोड कर दिया गया, जिससे जांच की गंभीरता पर सवाल खड़े होते हैं। यहां सवाल किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं, बल्कि उस प्रक्रिया पर है जो शिकायत को समझने से ज्यादा निस्तारित दिखाने पर जोर देती है। जब जांच नियमों की भावना के अनुरूप न हो, जब मौके की वास्तविक स्थिति देखने के बजाय कागजों के सहारे फैसला कर दिया जाए, तो शिकायतकर्ता का भरोसा कमजोर पड़ता है। ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में रहने वाला आम आदमी पहले ही व्यवस्था के सामने खुद को असहज महसूस करता है। उसे डर रहता है कि ज्यादा बोलने से कहीं अगली बार काम और न बिगड़ जाए। ऐसे में जब उसकी शिकायत भी औपचारिकता बनकर रह जाती है, तो सिस्टम से उसकी उम्मीद टूटने लगती है। हर शिकायत के पीछे एक इंसान की रोजमर्रा की समस्या होती है। सड़क, बिजली, पानी, राशन, आवास या किसी योजना से जुड़ा सवाल। ये मुद्दे फाइल नहीं हैं, ये जिंदगी से जुड़े सच हैं। अगर इनका समाधान सिर्फ रिकॉर्ड में हो और जमीन पर न दिखे, तो शिकायत प्रणाली का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यवस्था में सुधार की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन सुधार तब ही माना जाएगा जब शिकायत का निस्तारण मैसेज तक सीमित न रहे, बल्कि उसका असर वास्तविक रूप से नजर आए। जब शिकायतकर्ता यह महसूस करे कि उसकी बात सुनी गई, समझी गई और उस पर ईमानदारी से कार्रवाई हुई। शिकायत प्रणाली का मकसद केवल आंकड़े पूरे करना नहीं, बल्कि जनता का भरोसा बनाए रखना होना चाहिए। क्योंकि शिकायत दर्ज होना एक प्रक्रिया है, लेकिन इंसाफ मिलना ही उसका असली अर्थ है। जब तक शिकायत का निस्तारण कागजों में नहीं, हकीकत में नजर नहीं आएगा, तब तक भरोसा कैसे बनेगा? शिकायत प्रणाली का उद्देश्य आंकड़े नहीं, समाधान होना चाहिए। अब प्रत्येक रविवार सी न्यूज भारत पर पढ़ें सी वी आजाद के मन की बात। 

रिपोर्टर - विजय 

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