पानी को हल्के में मत लो, यह आखिरी चेतावनी है

हरदोई : सुबह की शुरुआत होती है नल खोलने से। ब्रश करते वक्त पानी बहता रहता है, जैसे यह कभी खत्म ही नहीं होगा। टंकी भर जाती है, फिर भी ओवरफ्लो होता रहता है। कहीं सरकारी टोंटी टूटी पड़ी है, कहीं निजी नल से दिन-रात पानी टपक रहा है। खराब टोंटी ठीक कराना ज़रूरी नहीं समझा जाता, और नल बंद करना भी जैसे कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं रह गई।

यह सब हम उस समय कर रहे हैं, जब ज़मीन के नीचे का पानी लगातार नीचे जा रहा है। हर साल भू-जलस्तर गिर रहा है। हैंडपंप जवाब दे रहे हैं। बोरिंग और गहरी करनी पड़ रही है। पानी निकालने की मेहनत बढ़ रही है, लेकिन पानी की क़ीमत हमारी सोच में अब भी नहीं बढ़ी।

आज एक नई और खतरनाक सोच भी जन्म ले चुकी है। लोग कहते हैं - जब सामने वाला ध्यान नहीं दे रहा तो मैं क्यों दूं। अगर कोई दूसरा पानी बहा रहा है तो मैं क्यों बचाऊं। यही सोच सबसे ज्यादा नुकसानदेह है। क्योंकि जल संरक्षण किसी और की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर उस इंसान की जिम्मेदारी है जो पानी पीता है। दूसरों की लापरवाही को अपना बहाना बनाना, आने वाली पीढ़ियों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है।

हमें लगता है कि पानी कभी खत्म नहीं होगा। जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया में मौजूद कुल पानी का बहुत छोटा हिस्सा ही पीने योग्य है। समुद्रों में भरा खारा पानी हमारी प्यास नहीं बुझा सकता। मीठा पानी सीमित है और उसी पर इंसान, खेती, पशु और पूरी सभ्यता टिकी हुई है।

दुनिया के कई हिस्सों में लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। कहीं महिलाएं और बच्चे रोज़ मीलों पैदल चलकर पानी लाते हैं। कहीं दूषित पानी पीने से बीमारियां फैल रही हैं। कहीं पानी को लेकर झगड़े, संघर्ष और पलायन तक हो रहे हैं। कुछ देशों में पानी सोने से भी ज्यादा कीमती हो चुका है।

और हम साफ पानी को यूं ही बहा रहे हैं।

आज अगर ब्रश करते समय नल बंद नहीं किया गया, आज अगर ओवरफ्लो होती टंकी को नजरअंदाज किया गया, आज अगर टूटी टोंटी को ठीक कराना जरूरी नहीं समझा गया, तो कल यही लापरवाही सबसे बड़ी मुसीबत बन जाएगी। तब शायद नल होंगे, लेकिन पानी नहीं होगा।

अब वक्त है चेत जाने का। यह सिर्फ सलाह नहीं, आखिरी चेतावनी है। आओ आज हम सब मिलकर यह प्रण लें कि जल बचाएंगे। खुद भी जिम्मेदार बनेंगे और अपने बच्चों को भी पानी की कीमत और उसकी नैतिक जिम्मेदारी सिखाएंगे, ताकि आने वाली पीढ़ी हमें दोषी नहीं, जागरूक नागरिक के रूप में याद करे।

बारिश के पानी को बह जाने देने के बजाय उसे सहेजना होगा। छतों से गिरने वाले पानी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए जमीन में उतारा जा सकता है। RO से निकलने वाला वेस्ट पानी पोछा लगाने, कपड़े धोने, गाड़ियों की सफाई और पौधों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

घर, स्कूल, दफ्तर और दुकानों में यह आदत बनानी होगी कि नल उतनी देर ही खुले, जितनी जरूरत हो। टंकी भरते समय समय पर मोटर बंद की जाए। सरकारी और सार्वजनिक स्थानों पर खराब टोंटियों को नजरअंदाज करने के बजाय उन्हें ठीक कराने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।

जल कोई सुविधा नहीं, जीवन है। इसे बचाना किसी बड़े आंदोलन से नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की छोटी आदतों से शुरू होता है। जब हर व्यक्ति यह सोचेगा कि मुझे ही शुरुआत करनी है, तभी बदलाव आएगा।

आज अगर पानी बचाया, तो कल जिंदगी बचेगी। नहीं तो आने वाला कल हमसे यही पूछेगा - जब पानी बह रहा था, तब आपने रोका क्यों नहीं? (अब प्रत्येक रविवार सी न्यूज भारत पर सी वी आजाद के मन की बात)

रिपोर्टर : विजय

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