साहित्य के गुलशन में पेश है हरिवंश राय बच्चन चुनिंदा रचनाएं

छायावादी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी रचनाओं के जरिया प्रेम के अवसाद को साहस में परिवर्तित करने का पूरा प्रयास किया है। बच्चन की अधिक्तर रचनाएं निराशा में आशा का दीपक प्रज्वलित करने का काम किया है। साहित्य के इस गुलशन में आज हम आपके साथ हरिवंश राय बच्चन जी की कुछ ऐसी ही चुनिंदा 3 रचनाएं साझा कर रहें है. हम उम्मीद करते हैं कि आपको जरूर पसंद आयेंगी .
आज मुझसे बोल, बादल आज मुझसे बोल, बादल!
तम भरा तू, तम भरा मैं,
ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं,
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
आग तुझमें, आग मुझमें,
राग तुझमें, राग मुझमें,
आ मिलें हम आज अपने द्वार उर के खोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
भेद यह मत देख दो पल-
क्षार जल मैं, तू मधुर जल,
व्यर्थ मेरे अश्रु, तेरी बूंद है अनमोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
जब रजनी के सूने क्षण में,
तन-मन के एकाकीपन में
कवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता,
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
जब उर की पीडा से रोकर,
फिर कुछ सोच समझ चुप होकर
विरही अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ हटाता,
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
पंथी चलते-चलते थक कर,
बैठ किसी पथ के पत्थर पर
जब अपने ही थकित करों से अपना विथकित पांव दबाता,
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
तुम तूफान समझ पाओगे गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे ?
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