जुदाई के दर्द को बयां करती "नीरज " की हृदयस्पर्शी रचना

आज हम आपके साथ गोपालदास नीरज की एक ऐसी कविता साझा कर रहें है जो एक प्रेमी जोड़े के बिछड़ने के दर्द से भरी हुई है . इस रचना में नीरज जी ने एक ऐसी नायिका का दर्द बयां किया है जोकि विरहा की अग्नि में जल रही है ...इस रचना में नीरज जी ने बताया है कि कैसे अगर जीवन में वो खास शख्स नहीं मिल पाता है जिसे हम सबसे अधिक प्रेम करते हैं तो इंसान की जिंदगी बंजर सी हो जाती है....पढ़िए ये रचना...

 

हुई दोस्ती ऐसे दु:ख से 
हर मुश्किल बन गई रुबाई 
इतना प्यार जलन कर बैठी 
क्वाँरी ही मर गई जुन्हाई,
बगिया में ना पपीहा बोला,
द्वार ना कोई उतरा डोला,
सारा दिन कट गया बीनते, काँटे उलझे हुए बसन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वार अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में 
कहीं चुरा ले चोर ना कोई
दर्द तुम्हार, याद तुम्हारी,
इसीलिए जगकर जीवन-भर
आँसू ने की पहरेदारी,
बरखा गई सुने बिन वंशी
औ' मधुमास रहा निरवंशी,
गुजर गई हर ऋतु ज्यों कोई, भिक्षुक दम तोड़े दे विजन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
घट भरने को छलके पनघट
सेज सजाने दौड़ी कलियाँ,
पर तेरी तलाश में पीछे
छूट गई सब रस की गलियाँ,
सपने खेल न पाए होली, 
अरमानों के लगी न रोली,
बचपन झुलस गया पतझर में, यौवन भीग गया सावन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
मिट्टी तक तो रुंदकर जग में कंकड़ से बन गई खिलौना,
पर हर चोट ब्याह करके भी
मेरा सूना रहा बिछौना,
नहीं कहीं से पाती आई,
नहीं कहीं से मिली बधाई
सूनी ही रह गई डाल इस इतने फूलों भरे चमन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
तुम ही हो वो जिसकी खातिर
निशि-दिन घूम रही यह तकली
तुम ही यदि न मिले तो है सब
व्यर्थ कताई असली-नकली,
अब तो और न देर लगाओ,
चाहे किसी रूप में आओ,
एक सूत-भर की दूरी है बस दामन में और कफन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

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