चीख़ रहे थे जख़्म उसके, लेकिन लफ्जों पर खामोशी की चादर ओढ़े थी वो

रचनाएं ना सिर्फ लोगों का मनोरंजन करती हैं बल्कि बहुत से लोगों के जख्मो पर मरहम का काम करती हैं .उदास चेहरों से ग़मों की चादर उताराने का काम करती है. क्योंकि जब कोई इन्सान शब्दों के माध्यम से अपने दर्द को बयां कर देता है तो उसका मन काफी हद तक हल्का हो जाता है . और रचनाएँ या शायरी दर्द को बयां करने का सबसे बेहतरीन तरीका मानी जाती हैं . जब एक रचनाकार या शायर की कलम से दर्द भरे अल्फाज़ निकलते हैं तो वो लोगों के ह्रदय को स्पर्श करते हैं .ऐसी ही कुछ रचनाएं आज हम आपके साथ साझा कर रहे है जोकि अपने अंदर अथाह दर्द समेटे हुए है ....
1
रौशनी के पांव में तेरे अंधेरी बेड़ियाँ क्यों पड़ गयी?
स्वतंत्र आवाज तेरी रिश्तों की गुलाम क्यों बन गयी?
जख़्मो से तू घायल शेरनी बनने के बजाय
इतनी कमज़ोर क्यों पड़ गयी?
तू हमेशा खुद को गले लगाती आयी है ,
फिर आज क्यों दूसरों के तलाश में क्यों निकल पड़ी?
जब-जब गिरी है ठोकर खाकर
खुद ही खुद का हाथ थाम उठाया है खुदको,
फिर आज दूसरों से आस लगाकर क्यों बैठ गई?
अपने खुशियों की डोर दूसरों के हाथ में क्यों दे रही?
2
ये भूख बड़ी खतरनाक चीज होती है,
फिर चाहे पेट की हो, चाहे पैसे की,
चाहे जिस्म की हो या प्यार की ही क्यों न।
एक, इमानदार को बैमान बना देती है,
एक, इंसान को हैवान बना देती है
और एक,एक मजबूत से मजबूत इंसान को कमजोर बना देती है।
ये भूख ही है जो जिंदगी को जहन्नुम बना देती है।
3
भीड़ थी बहुत पर बिल्कुल अकेली थी वो,
पहाड़ सी ऊँची सोच रखने वाली
समुद्र-सी गहरी थी वो।
चीख़ रहे थे जख़्म उसके
पर लफ्जों पर खामोशी की चादर ओढ़े थी वो।
रो रही थी रूह उसकी,
सिर्फ लबों से मुस्करा रही थी वो।
भीड़ थी बहुत पर बिल्कुल अकेली थी वो,
मजधार में बिना पतवार की नाव थी वो,
कैनवास पर किसी चित्रकार अधूरी तस्वीर-सी थी वो।
जो कभी ना आने वाला था उस चित्रकार के
इंतजार में पलके बिछाए बैठी थी वो।
- मनीषा गोस्वामी
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