बाबा बागेश्वर की सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा का संकल्प पूर्ण !!

हिन्दुस्तान ने बहुत से दौर और बहुत सारे बदलाव देखें हैं कभी मुगलों द्वारा हिंदुस्तान की सरजमीं को रक्त से लाल किया गया तो कभी अंग्रेजी हुकूमत ने भारत को मजदूरी करने को बेबस कर दिया | अंग्रेजी शासक  जाते- जाते एक दर्द और जंग की लकीर हिंदुस्तान में खींच गए जो था भारत का बटवारा | जिसके कारण अनेकों लोगों को पलायन करने को मजबूर होना पड़ा और जिन्ना की जिहादी सोच ने लाखो कत्लेआम को बढावा दे दिया जिसके बाद पकिस्तान तो बन गया हालाँकि पाकिस्तान को भारत से एक दिन पहले ही 14 अगस्त 1947 को आजाद घोषित कर दिया गया. तब इसका नाम था डोमिनियन ऑफ पाकिस्तान. भले ही पाकिस्तान का जन्म मुसलमानों के लिए हुआ था, पर यह मुस्लिम राष्ट्र लंबे समय तक नहीं बन पाया. स्थापित होने के 9 साल बाद 23 मार्च 1956 को इसे औपचारिक रूप से 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान' नाम दिया गया | अब पाकिस्तान तो बन गया इस्लामिक स्टेट लेकिन हिंदुस्तान हमेशा से रहा धर्मनिरपेक्ष और शयद यही एक कारन है की हिंदुस्तान में आज भी आतंकवादी घटनाओं के होने पर मंदिर की सुरक्षा बड़ाई जाती है लेकिन चर्च या मस्जिद की सुरक्षा नहीं ? यह केवल सवाल नहीं एक मर्म है की आप सोचिए हिंदुस्तान में कश्मीर की घाटी में तिरंगा फेहराने में हमे इतने साल लग गए | इसके बाद भी जब लोग कहते हैं की आतंकवाद का कोई धरम नहीं होता तो उनलोगों के लिए मुझे बहुत तकलीफ होती है | यहाँ सी न्यूज़ भारत किसी पार्टी का पक्ष नहीं रख रहा है वल्कि हम बात कर रहे हैं उस सच्चाई की जो कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनी और न कभी उसपर काम किया गया | 
बाबा बागेश्वर यानी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हमेशा से ही बहुत चर्चित रहे हैं - आज से कुछ समय पूर्व अगर आप मुझसे पूछेंगे तो शायद बहुत सारे लोग इनको इतना सीरियसली नहीं लेते थे लेकिन आज के दौर में बाबा बागेश्वर को शयद ही कोई इगनोरे कर सकता हो क्योंकि उनके अन्दर एक अलग दीवानगी देखने को मिलती है और यही वो दीवानगी थी जो वीर मराठों के अन्दर आज़ादी की ल्यो प्रज्ज्वलित करती थी , ये वही दीवानगी है जो भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस को आज़ादी  के लिए अपने प्राणों की आहूति देने को मजबूर करती रही | 
बाबा बागेश्वर यानि धीरेन्द्र शास्त्री ने हिन्दू एकता पदयात्रा का संकल्प लिया और उसको प्रथम चरण में पूर्ण किया | 
बीते 7 नवंबर को दिल्ली के छतरपुर में कात्यायनी माता मंदिर से शुरू हुई बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन पदयात्रा 16 नवंबर को छठीकरा के चार धाम से वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर दर्शन के बाद समाप्त हुई | लेकिन इस पूरी पदयात्रा ने जो बड़े बड़े सवालों को हिंदुस्तान के समक्ष रख दिया है और भारी संख्या में जो प्रेम दिल्ली से वृन्दावन तक लोगों ने पदयात्रा को दिया है वो यह दर्शाता है की ये यात्रा केवल एक झांकी थी इसकी बड़ी तस्वीर बहुत जल्द हमें देखने को मिल सकती है | अब समझना यह होगा की आखिर इस यात्रा का उद्देश्ह्या क्या था - 

अपनी पदयात्रा के दौरान बाबा बागेश्वर ने लोगों को सात संकल्प दिलाने की बात कही है--
पहला संकल्प- यमुना की शुद्धि, जिससे यमुना का जल निर्मल तरीके से बहे और बांके बिहारी स्नान कर सकें
दूसरा संकल्प- ब्रज धाम पूर्व स्वरूप में रहे, ब्रज की रज सुरक्षित रहे, ब्रज के मंदिर सुरक्षित रहें.
तीसरा संकल्प- सामाजिक समरसता स्थापित हो.
चौथा संकल्प- भारत हिंदू राष्ट्र घोषित हो.
पांचवां संकल्प- तलवारों की नहीं, विचारों की क्रांति
छठवां संकल्प- लव जिहाद बंद हो.
सातवां संकल्प- गौ माता राष्ट्र माता हों और गो अभ्यारण्य बनाया जाए.


इस यात्रा ने सम्पूर्ण भारत में हिन्दू राष्ट्र की मांग को चेतना दे दी है अब एक तरफ बात हो रही है हिन्दू एकता की तो वहीँ यहाँ से रास्ता निकाला  जा रहा है भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का | इस यात्रा में बड़े बड़े राजनेताओं से लेकर बड़ी बड़ी हस्तियों ने अपनी सहभागिता से यह दर्शा दिया की अब भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना केवल एक सोच नहीं वल्कि बुलंद आवाज़ है जो बहुत जल्द अपनी कमयाबी की इबादत लिखने जा रही है | 
हालाँकि, यह कहना कि सिर्फ इस पदयात्रा के दम पर भारत 2029 तक वास्तव में एक कानूनी हिंदू राष्ट्र बन जाएगा, अभी अधिक संभावना नहीं लगता। पहला कारण यह है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है और इसे बदलने के लिए संवैधानिक हेरफेर की जरूरत होगी, जो बेहद जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। दूसरा, धार्मिक एकता की आवाज़ें भले ही बढ़ रही हों, लेकिन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को देखते हुए ऐसे कदम पर व्यापक विपक्ष और सामाजिक प्रतिरोध भी हो सकता है। तीसरा, पदयात्रा के उद्घोष और वास्तविक नीति‑निर्माण में अक्सर एक दूरी होती है — जन भावना को शक्ति देना एक बात है, और उसे विधि‑व्यवस्था में रूप देना दूसरी।
तो कुल मिलाकर — संभावना है कि बाबा बागेश्वर जैसी पदयात्राएँ हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को जन‑आंदोलन के स्तर पर मजबूती दें, लेकिन 2029 तक एक विधिसम्मत हिंदू राष्ट्र बनना बहुत ही जोखिम भरा अनुमान है। यह सपना कुछ लोगों के लिए प्रेरणादायक हो सकता है, लेकिन इसे साकार करने के लिए कई संवैधानिक, राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

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