होमवर्क में ‘ब्लिंकिट’ ने मारी बाज़ी: 9 साल के बच्चे ने ऐसे दिए जवाब कि वायरल हो गई वर्कशीट

आज के डिजिटल युग में ऑनलाइन ऐप्स का प्रभाव न केवल बड़ों पर, बल्कि बच्चों की सोच पर भी साफ दिखने लगा है। ऐसा ही एक मज़ेदार उदाहरण सामने आया एक नौ साल के बच्चे की होमवर्क वर्कशीट से, जिसने ऑनलाइन ग्रॉसरी प्लेटफॉर्म Blinkit को अपने जवाबों में इतना प्रमुख स्थान दिया कि सोशल मीडिया पर हलचल मच गई।
तीसरी कक्षा के छात्र ने ब्लिंकिट को बनाया सुपरमार्केट
दक्ष नाम का एक बच्चा, जो तीसरी कक्षा में पढ़ता है, उसे एक वर्कशीट दी गई थी जिसमें पूछा गया था कि उसका परिवार खाने-पीने की चीजें कहां से खरीदता है। बच्चों से उम्मीद की जाती है कि वे बाजार, दुकान या किराना स्टोर जैसे पारंपरिक विकल्पों का जिक्र करेंगे, लेकिन दक्ष ने हर सवाल के जवाब में सिर्फ एक ही नाम लिखा – Blinkit।
फलों से लेकर ब्रेड, दूध, दाल, तेल, चावल, शक्कर, गेहूं और यहां तक कि अनाज तक – सभी के स्रोत के रूप में उसने ‘ब्लिंकिट’ लिखा। सिर्फ मांस के लिए उसने ‘Licious’ ऐप का नाम दिया, जो कि मीट डिलीवरी में विशेषज्ञता रखता है।
मम्मी ने किया शेयर, इंटरनेट पर छा गया जवाब
दक्ष की मां को यह जवाब इतने दिलचस्प और मज़ेदार लगे कि उन्होंने वर्कशीट की तस्वीर लेकर उसे ब्लिंकिट के इंस्टाग्राम पर शेयर कर दिया। उन्होंने कैप्शन में लिखा – “हाहाहा यह मेरे 9 साल के बच्चे का एक बेहतरीन काम है।”
ब्लिंकिट ने तुरंत इस पोस्ट को दोबारा शेयर किया और लिखा – “केवल पूकी सामग्री।” वहीं कैप्शन में जोड़ा, “ब्लिंकिट एडमिन अपने फोन को देखते हुए रोते देखे गए।”
वायरल हुआ पोस्ट, लिशियस ने भी किया मजेदार कमेंट
यह पोस्ट तेजी से वायरल हो गया और इसे 5,000 से ज़्यादा लाइक्स मिल चुके हैं। Licious ने भी इसमें हिस्सा लेते हुए कमेंट किया – “यह तो ऐसा है जैसे मैथ्स प्रॉब्लम में अपना नाम देखना।”
यूजर्स भी पीछे नहीं रहे – किसी ने लिखा, “बेटा 0 मार्क्स के लिए मशहूर हो रहा है,” तो किसी ने मज़ाक में कहा, “मम्मी डांटेंगी नहीं, क्योंकि मैंने भी यही जवाब दिया है।”
एक यूजर ने लिखा, “ब्लिंकिट बच्चों को अच्छी तरह बिगाड़ रहा है,” तो वहीं किसी ने सुझाव दे डाला – “ब्लिंकिट को चाहिए कि वो बच्चे को कोई गिफ्ट दे।”
बच्चों की दुनिया में भी डिजिटल ऐप्स का जलवा
यह पूरी घटना यह दर्शाती है कि किस तरह ऑनलाइन शॉपिंग ऐप्स बच्चों की दैनिक सोच का हिस्सा बनते जा रहे हैं। अब बाजार जाना नहीं, बल्कि मोबाइल पर ऐप खोलना ही पहली आदत बन चुकी है – यहां तक कि स्कूल के असाइनमेंट में भी।
No Previous Comments found.