विपक्ष के नेताओं का निलंबन लोकतंत्र के लिए कैसे साबित हो सकता है खतरानाक ?

संसद के शीतकालीन सत्र में अबतक विपक्ष के कुल 141 नेता निलंबित किए जा चुके हैं। जिनमें 49 नेता पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिए गए हैं. इनमें से 46 लोकसभा से और 46 राज्यसभा से थे. अगर दोनों सदनों सांसदों के निलंबन की बात की जाए तो लोकसभा से अब तक 95 जबकि राज्यसभा से 46 सांसदों को संसद से बाहर का रास्ता दिखाया गया है.और अभी भी संसद के शीतकालीन सत्र से सांसदों के निलंबन की कार्रवाई लगातार जारी है. अब देखना यह है कि आज किसी नेता का निलम्बन होता है या नही .
अब तक के विपक्ष के प्रमुख निलंबित नेता
संसद के शीतकालीन सत्र में अब तक दोनों सदनों में मिलकर विपक्ष के कुल 141नेता निलम्बित किये जा चुके है .जिनमे कुछ प्रमुख नेता भी शामिल है , शशि थरूर,अधीर रंजन चौधरी, मनीष तिवारी,दिपाल यादव, सुप्रिया सुले ,कल्याण बनर्जी जैसे कई बड़े नेता शामिल है .
संसद के निलम्बन ने 1989 के रिकॉर्ड को तोड़ा
1989 में राजीव गाँधी की सरकार के शासनकाल में अबतक सबसे अधिक संख्या में नेताओं का नितंबन किया गया था उस समय 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.बलराम जाखड़ लोक सभा अध्यक्ष और थंबी दुरै डिप्टी स्पीकर थे.पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के जांच के लिए बनाए गए ठक्कर आयोग की रिपोर्ट लोक सभा में रखी गई थी। इस बार संसद के शीतकालीन सूत्र में विपक्ष के नेताओं के निलंबन ने 1989 के रिकॉर्ड को तोड़ा दिया है।
जब विपक्ष ही नहीं रहेगा तो कौन उठाएगा सरकार के कामों पर सवाल
इस निलंबन की प्रक्रिया से एक तरफ कुछ लोग खुश है तो दूसरी तरफ राजनैतिक विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर किया हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह से संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के नेताओं को निलंबित किया जा रहा है वो एक लोकतंत्रिक देश के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है. क्योंकि बिना विपक्ष के लोकतंत्र सम्भव ही नहीं है, बिना विपक्ष के लोकतंत्र का मतलब तानाशाही। जब विपक्ष ही नहीं होगा तो फिर सरकार से उसके कार्यों को लेकर जवाबदेही कौन करेगा .और जब विपक्ष का कोई नेता ही नही रहेगा तो फिर संसद की कार्यवाही कैसे चलेगी .
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