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आखिर क्यूं भारत में इनकम बढ़ने के बाद भी खाने की प्राथमिकता हो रही कम ?

भारत में लगभग हर नागरिक खाने पीने का शौकीन है.  भारतीय अपने खाने पीने को लेकर अक्सर मशहूर रहते है.  खाना हमेशा से भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा रहा है. एक दशक पहले तक देश में रह रहे लोग अपने खाने पीने पर सालाना खर्च का तीन-चौथाई हिस्सा खर्च करते थे. जिसके कारण पुराने सर्वे में खर्च के आंकड़े भी ज्यादातर खाने पर ही फोकस रहते थे.  गरीबी रेखा का निर्धारण इस आधार पर किया जाता था कि किसी व्यक्ति को एक दिन में कितनी कैलोरी की जरूरत है और इसके लिए उसे कितना खर्च करना पड़ेगा. लेकिन ये आंकड़ा पिछले एक दशक में काफी तेज़ी से घटा है.  उससे पहले ऐसा नहीं  हुआ करता था. जैसे जैसे लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे आने लगें उन्होंने खाने पर कम और बाकी चीजों पर ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया. भारत में ये बदलाव सिर्फ शहर तक ही सीमत नहीं है, बल्कि गांव में भी इसका असर पिछले कुछ सालों में देखने को मिला है.  लोग खाने के बजाय अपनी दूसरी ज़रूरतों को मत्तव दे रहे है, जिसका नतीजा ये है , कि भारत में लोगों के घर का  कुल खर्चा आधे से भी कम हो गया है. 

भारत के शहरों में यह बदलाव 1990 के दशक के अंत तक देखा गया था. ये वो दौर था जहां लोगों ने खाने से ज्यादा ईंधन, किराया, शिक्षा, स्वास्थ्य, यात्रा आदि पर खर्च करने की शुरुआत कर दी थी. जिसके बाद यही बदलाव ग्रामीण भारत में भी दखने को मिल रहा है. जहां एक वक़्त तक लोग खेती कर दो वक़्त के खाने को प्राथमिकता देते थे तो अब लोग खाने के बजाय अन्य चीजों पर ज्यादा खर्च करने लगे हैं. 

आखिर क्या है कारण- 

-बढ़ती हुई इनकम के साथ बढ़ती हुई ज़रूरतें
-खाने को प्राथमिकता न देकर अन्य ज़रूरतों को प्राथमिकता देना 
-लाइफस्टाइल पर ज्यादा फोकस कर उसे मेंनटेंन करना
-किराया, शिक्षा आदि की ज़रूरतें बढ़ी 
-स्वास्थ्य और मेंटल ट्रीटमेंट लेना 


ताजा आंकड़ो के अनुसार भारत में अब खाद्य पर खर्च ग्रामीण और शहरी दोनों के मासिक खर्च का आधे से भी कम है, और यह हिस्सा पिछले कुछ दशकों में तेजी से घटा है. जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ती है और वे मैन्युअल (हाथ से काम करने वाले) श्रम से दूर होते जाते हैं, वैसे-वैसे खाने पर खर्च कम होने लगता है. इसका मतलब है कि जैसे-जैसे लोग ज्यादा कमाने लगते हैं, वे खाने पर कम खर्च करते हैं क्योंकि उनके पास अन्य चीजों पर खर्च करने के लिए पैसे होते हैं. ऐसी स्थिति में आप विकसित अमेरिका जैसे देशों को देख कर अंदाज़ा लागा सकते हैं, की भारत में आने वाले  कुछ ही सालों में लोग कुल खर्च का सिर्फ 15 से 20  प्रतिशत हिस्सा खाने पर खर्च करेंगे. अमेरिका जैसे देशों में लोगों की आय ज्यादा है, लोग ज्यादा कमाते है, इसलिए उनके पास खाने के अलावा कई अन्य जरूरतों के लिए पैसे होते हैं. लेकिन भारत में लोगों की आय बढ़ने के बाद लोग खाने पर कम और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने को प्राथमिकता दे रहे है.  जिनमें युवाओं की गिनती बढ़ी है.

 

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