ईसबगोल की खेती कैसे करें: शुरुआत के लिए स्टेप बाय स्टेप गाइड
ईसबगोल, जिसे अंग्रेज़ी में Psyllium कहा जाता है, एक बहुमूल्य औषधीय फसल है। इसके बीजों से निकलने वाला भूसी (हस्क) कब्ज़, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज़ जैसी समस्याओं में फायदेमंद माना जाता है। भारत में ईसबगोल की खेती खासकर गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकप्रिय है।
मौसमी आवश्यकताएँ
ईसबगोल ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगता है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C है। यह हल्की दोमट मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है।
बुवाई का समय और विधि
सालाना बुवाई: अक्टूबर-नवंबर
बुवाई की गहराई: लगभग 2-3 सेंटीमीटर
बीज की मात्रा: 6-8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
बीज को हल्की मिट्टी में बुवाई करना चाहिए और उसके बाद मिट्टी हल्की सी दबा दी जानी चाहिए।
सिंचाई और देखभाल
ईसबगोल की फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। मुख्य ध्यान जड़ प्रणाली को स्वस्थ रखने और फसल को फंगस से बचाने पर देना चाहिए।
खाद और उर्वरक
जैविक खाद: गोबर की खाद या कंपोस्ट (10-12 टन प्रति हेक्टेयर)
रासायनिक उर्वरक: नाइट्रोजन 50-60 किग्रा/हे, फॉस्फोरस 40-50 किग्रा/हे, पोटाश 20-25 किग्रा/हे
कटाई और उपज
कटाई का समय: मार्च-अप्रैल (लगभग 120 दिन के बाद)
जब पौधे पीले होने लगें और बीज पूरी तरह पक जाए, तो फसल काटें।
अच्छी देखभाल और सिंचाई के साथ, प्रति हेक्टेयर 400-600 किलोग्राम ईसबगोल बीज प्राप्त हो सकते हैं।
बाजार और उपयोग
ईसबगोल का उपयोग मुख्य रूप से आयुर्वेदिक दवाओं और स्वास्थ्य उत्पादों में किया जाता है। इसकी भूसी (हस्क) अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी काफी मांग में है।
ईसबगोल की खेती कम मेहनत में उच्च लाभ देने वाली फसल है। सही समय पर बुवाई, मिट्टी की तैयारी और सिंचाई का ध्यान रखकर किसान इस फसल से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
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