मोह त्याग कर क्यों जैन धर्म के लोग लेते हैं दीक्षा ,जाने

जैन धर्म में दीक्षा एक महत्वपूर्ण संस्कार हैं, जिसे जैन मुनि या आर्यिका के रूप में जाना जाता हैं.जैन धर्म में दीक्षा लेने का अर्थ हैं की ,सभी भौतिक सुख-सुविधाएं त्यागकर एक सन्यासी का जीवन बिताने के लिए खुद को समर्पित कर देना होता हैं.दीक्षा लेने के कई कारण हैं, जिनमें धार्मिक, नैतिक और व्यक्तिगत कारण शामिल हैं. धार्मिक कारणों में, मोक्ष प्राप्ति के लिए दीक्षा आवश्यक मानी जाती हैं, जिससे व्यक्ति को कर्मों के बंधन से मुक्ति मिलती हैं. दीक्षा लेने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती हैं और वह आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ता हैं. इसके अलावा, दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति जैन धर्म के सिद्धांतों और नियमों का पालन करने के लिए बंध जाता हैं. वही नैतिक कारणों में, दीक्षा लेने से व्यक्ति अहिंसा, तपस्या और आत्म-नियंत्रण के मार्ग पर चलता हैं. दीक्षा लेने के बाद ,व्यक्ति के लिए समाज सेवा करना जरुरी होता हैं.साथ ही व्यक्तिगत कारणों में, दीक्षा लेने से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास का अवसर मिलता हैं, आत्म-ज्ञान प्राप्त होता है, और शांति और संतुष्टि मिलती हैं. इन कारणों से जैन धर्म में दीक्षा एक महत्वपूर्ण संस्कार हैं, जो व्यक्ति को धार्मिक, नैतिक और व्यक्तिगत रूप से विकसित करने में मदद करता है.दीक्षा लेने से व्यक्ति अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदल सकता हैं और आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ सकता हैं.

दीक्षा लेने की प्रक्रिया
जैन धर्म में दीक्षा लेने की विधि एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैं, जिसमें कई चरण शामिल हैं. सबसे पहले, दीक्षा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज जैसे कि जन्म प्रमाण पत्र, शिक्षा प्रमाण पत्र आदि तैयार करने होते हैं. इसके अलावा, आर्थिक व्यवस्था करनी होती हैं और मानसिक तैयारी करनी होती हैं, जिसमें अपने परिवार को भी इसके लिए तैयार करना होता हैं.दीक्षा प्रक्रिया में, सबसे पहले दीक्षा लेने के लिए आवेदन करना होता हैं और जैन मुनि या आर्यिका के समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त करनी होती हैं. इसके बाद, दीक्षा की तिथि निर्धारित की जाती हैं और इसके लिए आवश्यक व्यवस्था की जाती है.दीक्षा संस्कार में, जैन मुनि या आर्यिका द्वारा दीक्षा दी जाती हैं, जिसमें व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता हैं.दीक्षा के बाद, व्यक्ति को जैन मुनि या आर्यिका के साथ रहना होता हैं और उनकी देखरेख में आध्यात्मिक जीवन जीना होता हैं. इसके अलावा, व्यक्ति को विहार करना होता हैं, शाकाहारी आहार लेना होता है, तपस्या और आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करना होता हैं, और समाज की सेवा करनी होती हैं.

दीक्षा कैसे ली जाती हैं ?
दीक्षा लेने के लिए बतौर एक समारोह या कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैं. जिसमें कई संस्कार पूरे करने के बाद दीक्षा मिलती हैं. दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति को 5 व्रतों का पालन करना पड़ता हैं. जिनमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह शामिल हैं. दीक्षा लेने के बाद, दीक्षार्थी साधु और साध्वी बन जाते हैं

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