जैविक खेती की महत्ता: टिकाऊ भविष्य की ओर एक कदम

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां लगभग 60% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। बदलते समय के साथ रासायनिक खेती ने भले ही उत्पादन बढ़ाया हो, लेकिन इसके दुष्परिणाम पर्यावरण, स्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता पर साफ़ दिखने लगे हैं। ऐसे समय में जैविक खेती (Organic Farming) न केवल एक विकल्प, बल्कि एक अनिवार्यता बन गई है।
जैविक खेती क्या है?
जैविक खेती एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कृत्रिम रसायनों, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता। इसकी बजाय प्राकृतिक खाद, गोबर, वर्मी कंपोस्ट, नीम के कीट नियंत्रण उत्पादों और फसल चक्र जैसे पारंपरिक तरीकों का उपयोग होता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए, सुरक्षित और पोषक तत्वों से भरपूर फसल पैदा करना है।
भारत में जैविक खेती: एक नजर आंकड़ों पर
APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) की रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार:
भारत में 2.9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक खेती की जा रही है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा जैविक उत्पादक देश बन चुका है, जैविक उत्पादकों की संख्या लगभग 43 लाख है।
जैविक उत्पादों का निर्यात:
2022-23 में भारत ने करीब 13,00,000 मीट्रिक टन जैविक उत्पाद निर्यात किए।
जैविक उत्पादों से भारत को लगभग ₹5,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा आय हुई।
राज्यवार स्थिति:
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड और सिक्किम जैविक खेती में अग्रणी राज्य हैं।
सिक्किम भारत का पहला पूरी तरह जैविक राज्य बन चुका है।
जैविक खेती के लाभ
1. स्वास्थ्य की रक्षा
रासायनिक अवशेषों से मुक्त अनाज, फल और सब्ज़ियाँ शरीर के लिए सुरक्षित होते हैं।
जैविक उत्पादों में विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सिडेंट की मात्रा अधिक होती है।
2. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना
जैविक खाद मिट्टी के पोषक तत्वों को पुनः भर देती है और इसकी संरचना को बेहतर बनाती है।
इससे मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है जो फसल के लिए लाभदायक होते हैं।
3. जल संरक्षण और प्रदूषण में कमी
जैविक खेती में जल की खपत कम होती है और जल स्रोतों में रासायनिक अपशिष्ट नहीं पहुंचते।
4. कृषक आत्मनिर्भरता
किसान अपने संसाधनों से खाद, कीटनाशक आदि बना सकते हैं, जिससे उनकी लागत घटती है।
जैविक उत्पादों के लिए बाजार मूल्य अधिक मिलता है, जिससे आमदनी बढ़ती है।
5. जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में सहायक
जैविक खेती ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करती है और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती है।
चुनौतियाँ भी हैं
उत्पादन में शुरुआती गिरावट: पहले कुछ वर्षों में उत्पादन सामान्य खेती की तुलना में कम हो सकता है।
बाजार तक पहुंच: अभी भी ग्रामीण किसानों के लिए जैविक उत्पादों के उचित बाजार तक पहुंच आसान नहीं है।
प्रमाणीकरण की जटिलताएँ: जैविक प्रमाणपत्र प्राप्त करना एक समय-consuming और महंगा प्रक्रिया हो सकता है।
सरकारी प्रयास
भारत सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे:
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER) – विशेष रूप से उत्तर-पूर्व भारत के लिए।
जैविक खेती केवल खेती की एक पद्धति नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय और सामाजिक आंदोलन है। यह न केवल धरती की उर्वरता को बनाए रखती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ, सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य की नींव भी देती है।
आज ज़रूरत है कि हम जैविक खेती को अपनाकर सिर्फ उत्पादन ही न बढ़ाएं, बल्कि प्रकृति, समाज और अपने स्वास्थ्य के साथ संतुलन बनाएं। सरकार, किसान और उपभोक्ता — तीनों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
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