किस दिशा से होगा है पितरों का आगमन...?

पितृ पक्ष ..यानी कि पितरों को याद करने का समय ....ये वो समय होता है , जो बहुत महत्वपूर्ण होता है ,,,भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर ये आश्विन कृष्ण अमावस्या तक जिसे महालया कहते हैं उस दिन तक पितृ पक्ष चलता है..... इस दौरान पितरों के नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है... पितृ पूजा में कई बातें ऐसी हैं जो रहस्यमयी हैं और लोगों के मन में सवाल उत्पन्न करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है..ऐसा ही एक सवाल है कि आखिर किस दिशा से पितरों का आगमन... जिसके पीछे क्या तथ्य हैं , चलिए आपको बताते हैं -
श्रद्धा के साथ पितरों का स्मरण करना ही श्राद्ध है.... मृत्यु के बाद पहला श्राद्ध गौ ग्रास के रूप में होता है और बाद के सभी श्राद्ध श्रद्धेय को यथोचित पकवानों का भोग लगाकर किए जाते हैं... ज्योतिषियों के मुताबिक श्राद्ध पक्ष में तर्पण के बाद श्राद्ध की तिथि पर पंडितों को भोजन कराया जाता है... पितृ विसर्जनी अमावस्या को सायंकाल नदियों के तटों पर दीप जलाकर पितरों को विदाई दी जाती है... श्राद्ध तिथि को श्रद्धालु दक्षिण दिशा की ओर मुख कर अपने पितरों का आह्वान करते हैं....पितृ पक्ष के लिए कुछ विशेष विधानों का पालन श्रद्धालुओं करते हैं... लेकिन बहुत से लोगों को नहीं पता होगा कि आखिर पितरों का आगमन किस दिशा से होता है ... बता दें कि शास्त्रों के मुताबिक महालया पार्वण श्राद्ध को सोलह श्राद्ध भी कहा जाता है.. पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है... पूर्णिमा के दिन पितृ दक्षिण स्थित पितृलोक से अपने वंशजों द्वारा दिया गया हवन ग्रहण करने के लिए धरती पर आते हैं...ऐसे में जानकारों के मुताबित वास्तु के हिसाब से कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए ... जैसे -
- श्राद्ध के दिन घर का मुख्य द्वार स्वच्छ और आकर्षक होना चाहिए
- मुख्य द्वार पर पुष्प और दीपक लगाना शुभ माना जाता है, जो सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को आमंत्रित करता है
- वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी गई है
- पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है. इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण किया जाना अच्छा माना गया है.
- मान्यता है कि जिन्होंने शरीर धारण किया है, चाहे वे पितृ हैं या गुरु, जो देव तुल्य हैं, उनकी पूजा सदैव दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम दिशा में की जा सकती है
- पूर्व, पूर्वोत्तर या उत्तर में नहीं, क्योंकि ये ईश दिशाएं हैं तर्पण के समय ऐसा स्थान चुनें, जो शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो
- स्वच्छता से तर्पण की क्रिया में दिव्यता और प्रभावशीलता बनी रहती है
- श्राद्ध-कर्म के दिन ब्राहमण को भोजन कराने से पहले दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कुश, तिल और जल लेकर पितरों का तर्पण करें
- तर्पण के समय अग्नि को पूजा स्थल के आग्नेय यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए
- श्राद्ध भोज कराते समय ब्राह्मण को दक्षिण की ओर मुख करके बिठाना चाहिए. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं
- श्राद्ध के दौरान घर में शांति और एकाग्रता बनाए रखें
- किसी भी प्रकार की अशांति या झगड़े से बचें
देखा जाए तो जानकारों का ऐसा मानना है कि श्राद्ध को पूरे नियम और समर्पण से करना चाहिए, इससे पितरों का आशीष प्राप्त होता है. और ये आशीष जीवन भर काम आता है ..फिलहाल
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