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अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं , अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या ? पढ़े जौन एलिया की शायरी

पाकिस्तान के मशहूर शायर जौन एलिया जोकि अपनी शायरियों से जाने जाते हैं.  जौन एलिया का खानदान साहित्यकारों और विद्वानों से भरा हुआ था. जौन एक ऐसे शायर थे, जिन्होंने अपने दुखों का जमकर बखान किया था.. जॉन एलिया कम्युनिस्ट अपने विचारों के कारण भारत के विभाजन के सख्त खिलाफ थे, लेकिन बाद में इसे एक समझौता के रूप में स्वीकार किया. 1957 में एलिया पाकिस्तान चले गये और कराची को अपना घर बना लिया. जल्द ही वे शहर के साहित्यिक हलकों में लोकप्रिय हो गए. उनकी कविता उनकी विविध अध्ययन आदतों का स्पष्ट प्रमाण थी, जिसके कारण उन्हें व्यापक प्रशंसा और दृढ़ता मिली. तो आइए जौन एलिया को याद करते हुए उनकी कुछ शारियाँ पढ़ते हैं..

अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं कि नाम कर रहे हैं

अब तो हर बात याद रहती है
ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या

इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने

उस गली ने ये सुन के सब्र किया

उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं

एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए.

अब मै सारी जहाँ में हूँ बदनाम!
अब भी तुम मुझको जानती हो क्या ?

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