"मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी".....जयशंकर प्रसाद

साहित्य की दुनिया में एक से एक महान कवि ,और लेखक आये हैं..ऐसे ही बेहद ही मशहूर और बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का नाम इस सूचि में लिया जाता हैं..आपकी जानकारी के लिए बता दे की इनका जन्म सन् 1889 ई में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ही पिता के निधन से पारिवारिक उत्तरदायित्व का बोझ इनके कधों पर आ गया। मात्र आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पाली, हिन्दी, उर्दू व अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का विशद ज्ञान प्राप्त किया था...
प्रसाद की रचनाएँ भारत के गौरवमय इतिहास व संस्कृति से अनुप्राणित हैं जिसमे उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं -झरना, ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, और अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया आदि हैं...

आइये जानते हैं उनकी बेहद ही मशहूर कविता लहर की कुछ पकंतिया...

मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रही पत्तियां देखो कितनी आज घनी।
इस गम्भीर अनन्त नीलिमा मे असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास।

तब भी कहते हो-कह डालूं दुर्बलता अपनी बीती
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
किन्तु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

यह बिडम्बना! अरी सरलते तेरी हंसी उड़ाऊं मैं
भूले अपनी, या प्रवंचना औरों की दिखलाऊं मैं ।
उज्जवल गाथा कैसे गाऊं मधुर चांदनी रातों की।
अरे खिलखिलाकर हंसते होने वाली उन बातों की ।

मिला कहां वह सुख जिसका स्वप्न देखकर जाग गया?
आलिंगन मे आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया ?
जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में
अनुरागिनि उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

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