युवती को भगा ले जाने तथा किशोर अवस्था में उसके साथ बलात्कार के मामले में आरोपी का जमानत प्रार्थना पत्र निरस्त

झांसी । युवती को भगा ले जाने तथा किशोर अवस्था में उसके साथ बलात्कार किए जाने के मामले में जिला कारागार में बंद आरोपी को जेल से रिहाई नहीं मिल सकी ,उसका जमानत प्रार्थना पत्र प्रभारी सत्र न्यायाधीश सुनील कुमार यादव के न्यायालय ने निरस्त कर दिया।
जानकारी देते हुए जिला शासकीय अधिवक्ता मृदुल कांत श्रीवास्तव ने बताया कि 05 जुलाई 2025 को वादी मुकदमा ने थाना-उल्दन में तहरीर दी थी कि 04 जुलाई को मेरी पुत्री उम्र करीब 21 वर्ष किसी काम से मऊरानीपुर गई थी। वहीं से गांव का ही अभय दागी पुत्र देवेन्द्र दांगी उसको बहला-फुसला कर भगा ले गया। जब यह लोग छतरपुर पहुंचे, तो अभय ने फोन करके कार मंगा ली. उसमें 04 लडके भी थे, फिर यह लोग मेरी पुत्री को कार में बैठाकर आगे ले जाने लगे, तो वह पचोरा टोल के पास कार का दरवाजा खोल कर उतर गई,तो अभय व उसके साथी मेरी पुत्री को कार में बैठने के लिए कहने लगे। तभी वहाँ पर टोल के कर्मचारी व अन्य राहगीर आ गये। यह लोग मेरी पुत्री को छोड़ कर कार लेकर चले गये। मेरी पुत्री ने फोन से सारी घटना की जानकारी दी, तो मैं अपनी पुत्री को छतरपुर से लेकर वापस आया। तहरीर के आधार पर अभियुक्त अभय दांगी व अज्ञात के विरूद्ध धारा 87,3(5) भारतीय न्याय संहिता के अन्तर्गत मामला पंजीकृत किया गया, दौरान विवेचना धारा 64 (1) व 115(2) भारतीय न्याय संहिता की बढोत्तरी की गयी।
जिला कारागार में बंद आरोपी अभय प्रताप सिंह दांगी की ओर से
धारा-87,64 (1),3(5),115 (2) भारतीय न्याय संहिता के तहत प्रस्तुत जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान जिला शासकीय अधिवक्ता ने जमानत प्रार्थनापत्र का विरोध करते हुए तर्क दिया गया कि अभियुक्त के विरूद्ध अपने साथियों की मदद से वादी मुकदमा की 21 वर्षीय पुत्री को शादी/ बलात्संग आदि करने की नीयत से बहला फुसलाकर भगा ले जाने, मारपीट करने एवं पूर्व में अवयस्कता की उम्र में शारीरिक संबंध बना कर बलात्संग करने का अभियोग है। यदि अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो गवाहों को डराने-धमकाने एवं अभियोजन साक्ष्य को प्रभावित करने की संभावना है। वहीं न्यायालय ने माना कि जहाँ तक पीड़िता का अभियुक्त को करीब 08 वर्ष से जानने, एक-दूसरे को पसन्द करने तथा पूर्व में उनके मध्य कई बार शारीरिक संबंध स्थापित होने का प्रश्न है, तो 08 वर्ष पूर्व पीड़िता की उम्र 13-14 वर्ष रही होगी, अर्थात वह अवयस्क थी और विधितः एक अवयस्क बालिका प्रेम प्रसंग या शारीरिक संबंध हेतु अपनी सहमति देने में पूर्णतः अक्षम होगी। पर्याप्त आधार नहीं पाते हुए न्यायालय ने प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया।
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